शनिवार, 29 अप्रैल 2017

braj 84 kos padyartra day 15

8 /3/2017-गाजीपुर ,टेरकदम ,प्रेमसरोवर ,साकेत बट ,हाउ बिलाऊ
 ,नंदगाँव दर्शन ,माँट गांव ,पावन सरोवर।






कल रात को ही हमें बता दिया गया था की आज की परिक्रमा 30 किलोमीटर की है, इसीलिए आज हम भोर में जल्दी उठे और जल्दी ही अपनी नित्य क्रिया से निवृत हो राधे रानी की आरती कर यात्रा पर निकल गए।  भोर में चारों तरफ अंधेरा होता है, हम सभी के हाथ में टॉर्च थी और मोबाइल था उसी से रास्ता देखते- देखते हम आगे बढ़ते जा रहे थे।  कुछ ही देर में चारों तरफ आसमान में सूर्य देव की किरणें अपना रास्ता बनाने लगी  और देखते ही देखते पहाड़ियों में से  सूर्य देव हम सभी को देखने लगे।
आज हम गाजीपुर होते हुए सबसे पहले टेर कदम पहुंचे। जहाँ  रूप श्री रूप गोस्वामी जी का मंदिर है , यहां उनकी भजन स्थली है।कहते हैं यहां कान्हा अपनी गैया चराने आते थे, और शाम को लौटते वक्त उन गैया का नाम ले लेकर उन्हें एकत्रित करते थे ।कान्हा को सभी गायोँ  का नाम याद रहता था।वे उनसे बहुत प्रेम करते थे , जो गाय दूर चली जाती थी ,कान्हा कदम के पेड़ पर बैठकर बांसुरी से उनका नाम पुकारते थे , बांसुरी में अपना नाम  सुनकर सभी गायें  कान्हा के पास एकत्रित हो जाती थी।
हम लोग जब एक लंबी यात्रा करते थे तो कभी-कभी हमारे ग्रुप से बिखर जाते थे सभी की चाल एक जैसी नहीं होती कभी हम रुक- रुक कर इंतजार करते थे एक दूसरे का तो कभी-कभी आगे बढ़ जाते थे, क्योंकि आज का

लक्ष्य बहुत लंबा था, इसीलिए लंबी यात्रा में अक्सर हम बिना ज्यादा किसी का इंतजार किए आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे  थे इसी बीच कभी-कभी ऐसा होता था कि हम सखियों को  एक दूसरे  गुस्सा भी आ जाता था, जब कोई हमारा इंतजार नहीं करता था।  एक अनजान जगह अनजान सफर जहां किसी को भी नहीं जानते और फिर ऊपर से इतना लंबा रास्ता तो मन में एक डर सा भी लगने लग जाता था।
धीरे-धीरे हम सभी अकेले चलते चलते प्रेम सरोवर पर पहुंच गए । प्रेम सरोवर पर बूढ़ी लीला का आयोजन होता है, भाद्रपद मास में एकादशी पर यहां भगवान का नौका विहार होता है, जिसमें राधे कृष्ण, प्रिय और प्रियतमा एक साथ प्रेम सरोवर में नौका विहार करके सभी को दर्शन देते हैं, यहां बहुत बड़ी संख्या में लोग इस नौका विहार के दर्शन करने आते हैं, इसीलिए इसका नाम प्रेम सरोवर है। प्रेम सरोवर के दर्शन कर, मैं आगे की यात्रा के लिए चल ही रही थी आज यात्रा में मन नहीं लग रहा था, क्योंकि कोई बहुत आगे था और तो कोई बहुत पीछे अकेले- अकेले सफर बहुत मुश्किल हो जाता है, मैं यही सोच रही थी कि कितनी अजीब बात है, हम सभी अलग- अलग जगह से अलग- अलग गांव से अलग-अलग क्षेत्र से आए हुए हैं, लेकिन यहां आकर एक परिवार की भांति हो गए हैं, और जब भी हम इस प्रकार बिखर जाते हैं तो एक दूसरे के प्रति कभी गुस्सा आक्रोश जैसी भावनाएं भी आ जाती है, जबकि हम जानते हैं कि यह  हमारा परिवार  नहीं है, पर फिर भी हमारी उम्मीदे,  हमारी आशाएं ,आपस में जुड़ जाती है। हम एक दूसरे पर अपना पूरा हक जताने लग जाते हैं।
रास्ते में प्रेम बिहारी जी के दर्शन किये, वहा से आगे हम साकेत वन पहुँच गए ,जहाँ हमने साकेत माता के दर्शन किये। यहाँ से हम कान्हा के गाँव के लिए निकल पड़े। नन्दगांव , जहाँ कान्हा और उनकी माता के प्रेम के कई किस्से जीवंत है। आपको ये जान कर बहुत आश्चर्य होगा की-   मैं ही नहीं किसी को भी यहां आकर किसी को भी  परिवार की बच्चों की पति की या घर की कोई याद नहीं आती, हम यहां इतने बेफिक्र होकर चल रहे हैं मानो लगता है कि बस यही हमारा जीवन है ,और हमें ताउम्र यही करना है एक पल को भी ख्याल नहीं आता कि घर में हमारी चीजों का हमारे सामान का हमारे परिवार का अभी क्या हाल हो रहा होगा। हम जब भी कहीं बाहर घूमने जाते हैं, एक हफ्ता या दो  हफ्ते में हमारा मन भर जाता है और हमें हमारे घर की याद सताने लगती है लेकिन आश्चर्य की बात थी कि यहां मुझे 15 दिन होने वाले हैं लेकिन अभी भी ऐसा लग रहा है, जैसे यह यात्रा निरंतर चलती रहे और हम भी इसी में अपना जीवन निरंतर चलाते रहें
 नंदगाँव में हम हाउ बिलाव पहुंच गए, हाउ बुलाओ वह जगह है जहां माता यशोदा अपने दोनों पुत्रों को श्री कृष्ण और बलराम जी को डराने के लिए हाऊ बिलाव का नाम लेती थी।  वह जब भी बहुत ज्यादा उन्हें परेशान करते

थे या उनकी बात नहीं मानते थे, तो वह उन्हें यहां डराने के लिए लेकर आती थी, और कहती थी अभी हाउ बिलाऊ  आ जाएगा। कान्हा मैया को बहुत कहते थे, कि मुझे एक बार हाऊ बिलाउ से मिलना है पर मैया यशोदा उन्हें गोद में उठाकर  चल देती । पहले यहां पर हाउ बिलाऊ  की मूर्ति भी थी, जिसमें शेर जैसी दो बड़ी- बड़ी बिल्लियां थी, परंतु अभी यहां पर मंदिर बहुत ही जीर्ण- शीर्ण  अवस्था में हो चुका है, इसलिए हम उनके दर्शन नहीं कर पाए।  नंद गांव में कान्हा  अपने माता- पिता के साथ अपने पूरे परिवार के साथ रहते थे, यहां उन्होंने बचपन की  सभी लीलाओं को रचा है,जिन  बाल्यकाल की शरारतों को आज हम पढ़ कर या सुनकर इतने खुश और इतने मंत्र मुग्ध हो जाते हैं, तो सोचिए कि जिन लोगों ने इन शरारतों को इन लीलाओं को अपनी आंखों से देखा होगा उनके तो आनंद का कोई ठिकाना ही नहीं होगा, कितने भाग्यशाली होंगे वह लोग।यहाँ हमने यशोदा माता के मंदिर ,वे जहाँ माखन निकलती थी कान्हा के लिए, बिलोवना ,यशोदा कुण्ड,आदि कई प्रमुख स्थानों  के दर्शन किये।आगे चलते- चलते हमने यहाँ नन्दबाबा का मंदिर देखा ,उनकी गौशाला देखी और भगवान् नरसिंग का प्राचीन मंदिर देखा।   यहीं पर मुझे किसी ने बताया कि हमारे ही ग्रुप की एक सखी  बेबी जीजी आज रास्ते में दो बार गिर गई है, उनके पैर में मोच भी आ गई और वह बहुत पीछे चल रही है। मैंने थोड़ी देर यहां पर रुक कर उनका इंतजार किया, उस दिन हम लोगों के फोन भी चार्ज नहीं हो पा रहे थे ,इसीलिए एक दूसरे से  बातचीत नहीं हो पाई ,सभी अलग-अलग बढ़ते जा रहे थे. थोड़ी देर इंतजार करने के बाद मैं भी आगे चल पड़ी। अब हमारा पड़ाव बहुत दूर नहीं था, यहां से कुछ दूरी पर ही पावन सरोवर है , जहां माता यशोदा कान्हा को नहलाती थी। वहां आसपास और भी कई मंदिर बने हुए हैं मैंने सभी के दर्शन किए और फिर मुझे पता चला कि बेबी जीजी टैंट  पहुंच चुकी  हैं, उनके पैर में बहुत तेज मोच आई है। मुझे भी उनकी  चिंता होने लगी अब मैं जल्दी से कदम बढ़ाते- बढ़ाते अपने पड़ाव की तरफ जाने लगी , आज क्योंकि पूरे रास्ते में किसी से भी बात नहीं हो पाई थी इसीलिए थोड़ी चिन्ता थी।

कोकिलावन हमारा पड़ाव था जहाँ शनि देव ,पंचमुखी हनुमान ,गणेशजी आदि कई मंदिरों के दर्शन किये और टैंट पहुँची। सामने जब मैंने देखा तो हमारे टेंट में सभी लोग बैठे थे और बेबी जीजी को बहुत तेज गुस्सा आया हुआ था। जितना दर्द उनको अपने पैर का नहीं हो रहा था उससे ज्यादा दर्द उन्हें इस बात का था कि आज पूरे रास्ते भर उनके साथ कोई नहीं था वह गुस्से में कह रही थी कि जब साथ रखना ही नहीं है जब आगे -आगे ही बढ़ना है तो ठीक है ,सब अकेले -अकेले ही रहेंगे । क्योंकि आज का सफर हम सभी के लिए अकेले -अकेले का ही था तो खुश तो कोई भी नहीं था लेकिन उनके पैर में मोच भी आ गई थी, इसीलिए उनको और भी ज्यादा दर्द हो रहा था।  हम सभी ने अंदर ही अंदर  महसूस किया कि आज हम सभी की  भावनाएं नाराजगी बन कर सामने आ रही थी प्रेम यही तो होता है, जहां प्रेम होता है वहां गुस्सा भी होता है और नाराजगी भी, क्योंकि हमें एक दूसरे से कई उम्मीदें और कई आशाएं बन जाती है। हम सभी ने मिलकर उन को शांत किया और यह निश्चित किया कि अब से हम अकेले-अकेले नहीं बढ़ेंगे दो या तीन -तीन के ग्रुप में चला करेंगे। जैसा कि हम लोग हर रोज किया करते थे। एक परिवार की अहमियत यही होती है, जहां हम लोग एक -दूसरे का सहारा बनते हुए एक- दूसरे का साथ निभाते हुए, पूरी जिंदगी आराम से काट लेते है।  आज बेबी जीजी को देख कर यही महसूस हो रहा था कि हम सब भी बिल्कुल एक परिवार की जैसे जुड़ गए थे, अभी तक हम लोगों में गुस्से वाला रूप नहीं आया था आज उसने भी अपनी कमी पूरी कर दी सही मायने में आज हम एक पूरे परिवार की तरह बंध  चुके थे।
सभी ने प्रसाद ग्रहण कर आराम किया । शाम होने वाली थी, हम सभी अपना गुस्सा भूलकर राधे रानी की आरती

करने चले गए और आज हमने टेंट में ही बैठ कर भजन किए क्योंकि आज बेबी जीजी बाहर नहीं बैठ सकती थी।
 आज हमारा पड़ाव कोकिलावन में था जो की बहुत ही रमणीय स्थान है रात को चारों तरफ से जंगल से जानवरों की आवाजें आ रही थी हम सभी अपना- अपना सामान व्यवस्थित कर पर एक दूसरे की उनके कार्यों में सहायता करने लगे। समय कभी भी एक जैसा नहीं होता जो सुबह था वह दोपहर में नहीं था और जो दोपहर में था  वह शाम तक नहीं रहा। सभी का गुस्सा गुस्सा ठंडी ठंडी रात में छू हो गया फिर से हंसी ठहाकों की आवाजें शांत जंगल में गूंजने लगी।  पूरे दिन का तनाव  रात में गुम हो चुका था।   रात ने  हमारे दिल दिमाग और शरीर को  ठंडक देते हुए अपनी शीतलता से बिलकुल हल्का कर दिया था। राधे राधे।






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