बुधवार, 12 जुलाई 2017

Braj 84 kos padyatra Day 16

9/3/17

फलेन गांव -जहाँ आज भी प्रहलाद मंदिर के एक पुजारी होलिका की चिता में स्वयं खड़े होते है, और उस अग्नि में से सुरक्षित बाहर भी निकल जाते हैं। 

बड़े- बड़े, घने- घने पेड़, घने जंगल की शांति को चीरती हुई मीठी -मीठी बांसुरी सी कोयल की कूक। यह सुबह बहुत निराली थी। यहां चारो तरफ बहुत सारी कोयल है, जो इन पेड़ों के पत्तों के पीछे छिप कर अपनी आवाज से आपके कानो में चाशनी सी घोल देती है । इतने प्यारे कोयल के संगीत की वजह से ही इस वन को कोकिलावन कहा जाता है, ऐसा माना जाता है कि यहां कृष्णा, गोपियों  और राधा को बुलाने के लिए पेड़ पर चढ़कर कोयल की कूक की प्यारी सी आवाज निकाला करते थे, वह आवाज इतनी मधुर और इतनी सुंदर होती थी ,कि सभी गोपियां उसको सुनकर कान्हा का इशारा समझकर अपना हर काम छोड़कर दौड़ी चली आती थी।
आज की यात्रा की पूरी तैयारी कर हमने राधे रानी की आरती की और निकल पड़े आज के नए अनुभव की तलाश में। कल की सभी बातों से सबक लेते हुए, आज हमने एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ा एक दूसरे का ध्यान रखते हुए हम पूरी यात्रा का एक साथ आनंद उठाना चाहते थे।
आज हमें फलेन गांव होते हुए पे गांव पर पहुंचना था। जो कि कोकिलावन से 10 -15 किलोमीटर दूर था। एक दूसरे के साथ हंसी- मजाक करते हुए, एक दूसरे का ध्यान रखते हुए हम आगे बढ़ते- बढ़ते  फलेन गांव पहुंचे।
फलेन गांव में प्रहलाद जी के कुंड और प्रहलाद जी  के मंदिर के दर्शन करने थे।  यहां से आते -आते रास्ते मे मुझे बहुत ही विचित्र बात का पता चला, कि प्रहलाद मन्दिर के एक पुजारी जो हर वर्ष होली के समय पर  होलिका दहन की अग्नि में  स्वयं प्रवेश करते हैं , और बिना किसी प्रकार की चोट के वे प्रहलाद की भांति उस अग्नि रूप चिता में से बाहर निकल आते हैं। ऐसी बातों पर जल्दी से विश्वास तो नहीं होता, इसीलिए उत्सुकता थी उन महात्मा के दर्शन करने की।
प्रह्लाद कुंड के जल में आचमन कर पूरी श्रद्धा के साथ हमने प्रहलाद मंदिर में भगवान नृसिंह और भक्त प्रहलाद के दर्शन किए, इस प्रकार के अद्भुत मंदिर आमतौर पर सभी जगह पर नहीं दिखाई देते। यहां भक्त प्रहलाद की पूरी कहानी भी लिखी हुई थी। सौभाग्य से वही महात्मा जिनकी मैंने कहानी सुनी थी, वह हमारे सामने ही मंदिर में आए हम सभी ने दूर से उनके दर्शन किए । देखते ही मन में कई प्रश्न उठ रहे थे ,लेकिन पता चला कि वह इस पूरे महीने मौन रहते हैं, और किसी से भी नहीं मिलते। उन्हीं के साथ रहते एक पंडित जी ने हमें बताया कि वो पुजारी जी  पूरे महीने अपने परिवार से दूर मंदिर में ही रहते हैं, और कंदमूल-फल ही खाते हैं, इसके अलावा वह रोज प्रह्लाद कुंड में स्नान कर मंदिर में ही भगवान प्रहलाद की दिन- रात सेवा करते हैं, उनका यह व्रत होलिका दहन के बाद ही खुलता है, पूरे महीने वे  इसी प्रकार व्रत का पालन करते हैं। आज के ठीक 3 दिन बाद वहां होलिका दहन था, दूर-दूर से लोग यहाँ की  होली को देखने आते हैं, और सभी बहुत आश्चर्य करते हैं, जब जलती हुई चिता समान होली में से प्रहलाद रूपी यह महात्मा बाहर निकल कर आते हैं। यही देखने के लिए देश -विदेशो  से दूर-दूर से सैलानी यहां आते हैं। पंडित जी ने बताया कि जब महात्मा जी उस जलती अग्नि में खड़े रहते हैं ,तब उनके विश्वास रूपी भगवान की श्रद्धा की रोशनी ही उन्हें रास्ता दिखाती है, जिसके सहारे वह उस गुफा रूपी चिता में से बाहर निकल जाते हैं । यह बात  स्वयं  महात्मा जी ने ही  पंडित जी को बताई थी, ऐसा उन पंडित जी का ही कहना था । मुझ जैसे कई लोगों को यह कहानी सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ । संदेह करने का कोई कारण नहीं था क्योंकि पूरे गांव में सैलानियों की भीड़ हमें दिख रही थी, एक बहुत बड़ा चोक था जहां होलिका दहन की पूरी तैयारियां चल रही थी। चारों तरफ इसी कहानी के चर्चे हो रहे थे।हमारी ही तरह सभी लोग दूर से ही उन पुजारी जी के दर्शन कर रहे थे। 
भारत देश के कोने- कोने में ऐसी अनेकों अचरज भरी कहानियां मौजूद है, जिनके बारे में हमने कभी नहीं सुना। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है, कि इन सभी कहानियों की जड़ में अगर हम देखेंगे, तो हमें महसूस होगा ईश्वर के प्रति हमारा विश्वास जितना अटूट और जितना दृढ़ होगा, हमारी शक्तियों को, हमारे आत्मविश्वास को, उतना ही बल मिलता है, और वही शक्ति हमें कुछ अलग और अद्भुत करने की प्रेरणा देती है।
यहां से 3 किलोमीटर और चलकर हम पे  गांव पर पहुंचे ,जहां हमारे टेंट लगे हुए थे ,वहां पहुंचकर हम सभी ने भोजन किया और विश्राम किया।
संध्या काल में भजन और आरती करके आज हम सभी सखियों ने मिलकर एक दूसरे के साथ कई प्रकार के नए पुराने, अनकहे किस्सों को बांटा जिसमें भगवान और भक्त के प्रेम और विश्वास की झलकियां थी।
राधे- राधे।