मंगलवार, 21 मार्च 2017

Braj 84 kos padyatra day 8

28/2/2017-कुसुम सरोवर , पूछरी का लोटा ,जातिपुरा मुखारविंद ,मानसी गंगा ,हरिदर्शन। 



आज हमें गोवर्धन परिक्रमा की बाकी की यात्रा पूरी करनी थी। एक खास बात, हम जब भी सुबह यात्रा के लिए रवाना होते, हम माँ राधे रानी की आरती करते, और ब्रिज रज यानी वहाँ की मिट्टी को माथे  पर लगाते, और एक चिमटी मुँह में लेते, इस विश्वास के साथ की ये हमारी हर प्रकार  से रक्षा करेंगी । सुबह- सुबह 5 बजे  मानसी गंगा के  ठन्डे पानी में डुबकी लगा कर पूरी श्रद्धा से वहाँ  पूजा की, और चाँदी के दीपक चढाये। वहां से हम दान घाटी मंदिर भगवान् जी के दर्शन करने के लिए निकले। 

                                                                    
दान घाटी मंदिर पहुँच कर हमने मंगला आरती के  दर्शन किये,और आगे की यात्रा के लिए आशीर्वाद लिया। वहां दान करने के लिए हमने बाहर दूकान से कुछ बिस्किट के पैकेट लिए, वहाँ मंदिर के बाहर बैठे, लोगो को बॉटने के लिए।मैंने 20  -30  पैकेट बॉट दिए थे, सरोज ने भी कुछ बाटे, और कुछ आगे के लिए रख लिए। हम बाहर के रास्ते से परिक्रमा करने लगे, वहाँ किमिट्टी  रुई की जैसी नरम- नरम थी।  हमारे पैरों के लिए जैसे, भगवान् ने कालीन बिछा रखा था। चलने में बड़ा मजा आ रहा था।  तभी आगे से बंदरों की टोली ने अटेक कर दिया।  आस- पास से बहुत बन्दर आने लगे वे सब हमारे साथ- साथ चल रहे  थे। सरोज ने ,रंजू ने और बाकी सखियों ने जो बिस्किट के पैकेट रखे थे, वे सभी बन्दर छीन- छीन कर भागने लगे। कभी शॉल से कभी बैग से वे छीन- छीन कर अपनी दावत उड़ा रहे थे। अब क्यों की मेरे पास कुछ नहीं था, तो मुझे बड़े मजे आ रहे थे।मेरा पूरा सामान मेरे कंधे पर टंगे बैग में था। मैं भी उसे बंदरों से बचा कर चल रही थी।  सोचिये,सुबह -सुबह का समय  पक्षियों की आवाजें ,बंदरों की मस्ती , हरे- भरे पेड़ ,सुनहरी मिट्टी ,खुला आसमान ,चारों तरफ दूर-दूर तक सूरज की किरणों से खिलते धरती के रंग ,  मैं वर्णन नहीं कर सकती उस पूरे रस्ते का।  



ये रास्ता  कब चला  गया पता भी नहीं चला, हम कुसुम सरोवर पहुँच गए। वहाँ  पैरों की खड़ाऊ चढाने की प्रथा है ,सभी ने वहां पूजा कर खड़ाऊ चढ़ाई। लेकिन  मेरी इच्छा वहाँ के पंडित जी को देने की  नहीं हुई ,मैं किसी को ढून्ढ रही थी।  जिसे इनकी जरूरत हो, तभी, मुझे एक साधु बाबा मिले। मैंने उनसे पुछा- बाबा क्या आप खड़ाऊ पहनोगे? तो बाबा ने हँसते हुए कहा- हां बेटा ला जरूर पहनूँगा। मुझे बहुत अच्छा लगा, मैंने बाबा को खड़ाऊ पहनाई और उनका आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा  पर निकल पड़े। क्यों की, हम गोवर्धन के बाहर की तरफ से यात्रा कर रहे थे, इसलिए रस्ते में नारद कुंड ,अप्सरा कुंड ये सभी नहीं देख पाए। हमारे रस्ते में अब हमारे साथ गोवर्धन पर्वत जी चल रहे थे। मेरे साथ एक आंटी जी चल रही थी, उन्होंने बताया की गोवर्धन पर्वत के किसी भी पत्थर को गोवर्धन से बाहर नहीं ले जा सकते है। इनकी पूजा गोवर्धन में ही हो सकती है ,यदि कोई फिर भी यहाँ से बाहर ले जाने के लिए  पत्थर उठाना चाहता हो , तो पहले उसे  यहाँ उस पत्थर के बराबर सोने का पत्थर चढ़ाना पड़ता है। हमारे साथ के कई लोगों ने अपने घर की पूजा के लिए पहाड़ से पत्थर उठाये थे, पर ये सुनते ही सभी ने वापस रख दिए। जगह जगह की नयी- नयी कहानियां सुनकर जिज्ञासा और भी बढ़ जाती है। इतना विशाल ये गोवर्धन पर्वत जिसे कान्हा ने मात्र एक चीटकी ऊँगली पर उठा लिया था वो भी तीन दिनों तक। हम सोच भी नहीं सकते, कि वे कान्हा स्वयं कितने विशाल होंगे।  


 इस यात्रा में हमारे आगे- पीछे हमने कई अंग्रेजों को भी नंगे पैर चलते देखा।उनको इस प्रकार पदयात्रा करते देख हम सभी दंग रह गए थे। मन में एक ख़ुशी भी थी की वो हमारे कृष्णा को इतना मानते हैं। हरे कृष्णा हरे रामा का संगीत नाचते गाते लोग ,कुछ के हाथों में माला थी कुछ के हाथों में भजन की पुस्तक सभी भक्ति में लीनथेयहाँ का पूरा रास्ता किसी पेंटिंग के जैसा था। आगे बन्दर ज्यादा थे तो हमने रास्ता बदल कर अब गाँव के अंदर की तरफ से जाने का फैसला किया। आसान नहीं होता इतना रोज पैदल चलना, लेकिन आगे चलते लोगों के होंसले ,पीछे से आते लोगों का साथ ,आपके मन के विश्वास को टूटने नहीं देता। बहुत जरूरी है की पदयात्रा में आप एक ग्रुप के साथ रहो ,इससे रास्ता आसानी से कट जाता है। हम पुछरी का लोटा नाम की जगह पहुचने वाले थे। ये राजस्थान की बॉर्डर पर है। कहते है ये गोवर्धन पर्वत का आखिरी चोर है, इसलिए इसे पूँछ कहते है, यहाँ एक लोटा नाम का भगवान् का मित्र था, जिसने भगवान् के लिए भोजन बनाया और एक लोटे में भोग लगाया कान्हा ने उसे पुनः आकर खाने को कहा ,परन्तु कान्हा यहाँ कभी नहीं आये और वो मित्र यहाँ पत्थर के बन गए। इसलिए यहाँ लोटा चढाने की परम्परा है।


  
हम भी मंदिर में चढाने के लिए लोटा लेकर आये ,ये बहुत ही छोटा सा मंदिर था जहां चारों तरफ बहुत सारे बन्दर थे। यहाँ हनुमान जी का मंदिर था। ये स्थान इस परिक्रमा में बहुत ही महत्वपूर्ण है यहाँ की और भी कई कहानियां प्रचलित है। यहाँ सेआगे चल कर हम रस्ते में रुके और  थोड़ा चाय ,नाश्ता किया। 



अब हमें जतीपुरा मुखारविंद के दर्शन करने के लिए आगे बढ़ना था। जतीपुरा का मंदिर एक छोटे पहाड़ पर गाँव के बाहर है , हम जब पहुँचे तो मंदिर के पीछे सूर्योदय हो रहा था, सफ़ेद मंदिर लाल आसमान देख कर आखों को बहुत सुकून मिल रहा था। वहाँ हमने गिरिराज भगवान् जी  के मुखारविंद के दर्शन किये और दूध चढ़ाया। गुलाल से भगवान् के साथ होली खेली। सभी तरफ अलग- अलग गुलाल के रंगों से मंदिर रंगा हुआ था। पैरो में जगह जगह गुलाल बिखरी हुई थी। हम सभी ने प्रभु जी की गुलाल को एक दुसरे को भी लगाया। बहुत मजा आया। 


अब हमे पुनः दान घाटी मंदिर पहुँचना था। जहाँ से आज की हमारी परिक्रमा शुरू हुई थी। अब हम थक गए थे बस यूँ लग रहा था की जल्दी से वो मंदिर आ जाये। हमने रास्ता काटने के लिए एक- दुसरे से रेस की एक- दुसरे का होंसला बढ़ाते जा रहे थे। जल्दी ही हम मंदिर  पहुँच गए, वहाँ के दर्शन करके  हमने ऑटो किया और  कुलेल कुंड जो कि हमारा विश्राम स्थल था वहां पहुँच गए। वहाँ आरती करके ,  एक साथ बैठकर प्रसाद ग्रहण किया। सभी अब आराम करने में व्यस्त थे ,सभी अपने पैरों में मेहंदी लगा- लगा कर पैरों को ठंडक दे रहे  थे। मैं आज की पूरी यात्रा के विषय में सोच रही थी। सभी बातें सभी दृश्य मेरी आखों के आगे आ रहे थे।ईश्वर की भक्ति एक ऐसा समुद्र है जिसकी कोई सीमा नहीं है, तभी तो आज वे अंग्रेज भी इतनी दूर हमारे कान्हा के रस में डूबे हुए थे. हम भी अपने- अपने घरों से परिवार से इतने दूर होकर भी खुश थे, ना कोई फ़िक्र थी, ना कोई परवाह, बस यहाँ की मिट्टी में यहाँ की हवा में घुलते जा  रहे थे,आज घर से निकले हुए पूरे आठ दिन हो गए थे, लेकिन मन आज भी यही  बोल रहा था, कि अभी तो शुरू किया है, अब तो मजा आने लगा है।  कल क्या होने वाला है इसका इन्तजार करते- करते हम कम्बल में घुस कर सो गए। कल गोवर्धन से आगे निकलना था। राधे राधे। 
  












शुक्रवार, 17 मार्च 2017

Braj 84 kos padyatra day 7

27 /2 /2017 -गोवर्धन परिक्रमा ,उध्वकुण्ड ,राधा कृष्ण कुंड। 



हम 3 बजे उठे, और सभी नित्य क्रिया के लिए जल्दी- जल्दी भागे। एक बात, जो रोज मैं उठते ही सोचती थी।  इतनी बड़ी पदयात्रा जहाँ हर साल हजारों लोग आते हैं। ये यात्रा साल में 2 से 3 बार होती है कई संघ और मंडल इसे संचालित करते हैं। इस यात्रा का बहुत बड़ा महत्त्व है, परंतु इसके बावजूद सरकार का इस तरफ कोई ध्यान नहीं है ,सुलभ शौचालय तो है ही नहीं, यहाँ तक की गावों के घरों में भी आज तक पूरे शौचालय नहीं बने। यात्री गण मजबूर होते हैं इधर- उधर जाने को। 




4 बजे हमने  अडिग गाँव आकर गोवर्धन की परिक्रमा प्रारम्भ की। ये परिक्रमा हम सभी ने नंगे पैर की थी। मैंने तो घाव की वजह से मोज़े पहने थे परंतु सरोज, रंजू  बाकी सभी यात्री भी नंगे पैर ही चल रहे थे। हमारे समुह में बहुत से ऐसे भी थे, जो पूरी यात्रा ही बिना जूते और चप्पल के कर रहे थे। आज हमें गोवर्धन की आधी यात्रा करनी थी। कल भी हम गोवर्धन ही रुकेंगे और पूरी यात्रा करेंगे। पहले हमें 10 km चलना है मानसी गंगा के लिए। आज रस्ते में पहाड़ों  के खूबसूरत नज़ारे देखने को मिल रहे थे। अब तक हम खेतों का मजा ले रहे थे। अब पहाड़ों के किनारे- किनारे खूबसूरत रस्ते पर चल रहे थे। एक ही पल में आपने कभी सुख -दुःख दोनों का मजा लिया है ?यकीन करिये हमारी आँखे प्रकृति के नज़ारे देख- देख कर खुश हो रही थी और पैर में चुभते छोटे- छोटे कंकर अलग ही मजा दे रहे थे। हम दोनों मजे लेते- लेते मानसी गंगा पहुँचे।वहाँ स्नान कर पूजा अर्चना की और कुछ फल इत्यादि खाकर आगे बढे ।



                                                  

आगे हमें राधा कुण्ड की 9km की परिक्रमा करके कूलेल कुण्ड पहुँचना था ।जहाँ आज हमें विश्राम करना था ।करीब 1:30बजे हम  हमारे विश्राम स्थल पर पहुँच गये ।जहाँ हमने प्रसाद ग्रहण किया और स्वयं सेवा कर थोड़ा आराम किया ।


 
शाम को पता चला, की दान  घाटी मंदिर में छप्पन भोग के दर्शन है ,तो हम सभी जल्दी से तैयार होकर ऑटो से मंदिर पहुँचे ।वहाँ का दृश्य बहुत सुन्दर था ।आज वहाँ फूलों के शृंगार की झांकी सजी थी ।छप्पन भोग सजा था ।इतने मनमोहक दर्शन पाकर मन प्रफुल्लित हो उठा ।हमने  आरती के दर्शन किये ,छप्पन भोग का प्रसाद और ऑटो से ही पुन: कूलेल कुण्ड पहुँच गये ।                                                                                                       


                                                    
राधे रानी की आरती कर,भजन किये,  हम सबने प्रसाद लिया और अपने- अपने टैंट में जाकर आज की झांकी की चर्चा करने लगे ।सच कहूँ तो यहाँ के सभी सदस्यों के मन में यही बात थी, की ये यात्रा बहुत ही दुर्लभ है, हम बहुत ही भाग्यशाली है, जो हमें कान्हा ने अपनी नगरी में बुलाया ।सेवक गण बता रहे थे, कल और भी ज्यादा आनँद आने वाला है ।हम अपने सामान पैक करके सोने की तैयारी करने लगे। रात को मन में कभी कभी ऐसे भाव आते थे ,कि ऐ काश, हमारा पूरा जीवन इस प्रकार यात्रा में ही निकल जाये। घर से रिश्ते- नातों से सभी से एक विरक्ति होने लगती थी। परन्तु ये भाव कुछ समय के लिए ही होते थे ,सुबह उठकर फिर हम नयी दुनिया में मगन हो जाते थे। मैंने पिछले अंक में कहा था इस यात्रा में बहुत सारे अनुभव एक साथ होते है। मैं बस इन्ही भावों का आनंद लेते- लेते सो गयी। 









बुधवार, 15 मार्च 2017

Braj 84 kos padyatra day 6

26/2/2017-ताल वन ,कुमुद वन ,गंगासागर ,कपिल देव ,शांतनु कुंड। 




आज सुबह हम 5 बजे यात्रा पर निकले। जब हमें बहुत ज्यादा km. चलना होता है, तो हम जल्दी निकलते हैं। आज 10 -12 km. ही चलना था। हमारे इस समूह में करीब- करीब  सभी उम्र के लोग हैं , बच्चों को छोड़ कर। मैंने देखा, सभी अलग- अलग भाव लेकर यात्रा पर चलते हैं। कुछ धर्म से जोड़ते हैं ,कुछ जिज्ञासा से चलते हैं, ,कुछ स्वयं की परीक्षा के लिए चलते है ,कुछ कान्हा की भक्ति में चलते है ,तो कुछ, एक बहुत बड़ा तीर्थ पूरा करने के लिए चलते हैं। मैं और सरोज, हम इस यात्रा पर एक अलग अनुभव करने के लिए निकले थे। हम आस्था ,धर्म, भक्ति और इस प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य को ,एक साथ आत्मसात कर रहे थे। ये वो अनुभव थे, जो आप कुछ दिनों की पूरी प्लानिंग के साथ की गयी यात्रा पर, नहीं महसूस  कर सकते। यहाँ नहीं पता था, की कल क्या होगा? अच्छा- बुरा,सुखः दुःख ,आंनद ,विरक्ति, कब ,कोनसा भाव,कौनसा पल, हमारा इन्तजार कर रहा है।यही इस यात्रा कि खूबसूरती है।

                                                              

तालवन में हमनें दाऊजी ,नंदबाबा ,रेवती ,कृष्ण राधा मंदिर के दर्शन किये। वहां सेआगे  बढ़कर हमने  कपिल मुनि और चैतन्य महाप्रभु मंदिर के दर्शन किये। हम लोग 11  बजे तक तो आराम से चल लेते थे, पर जैसे ही सूर्य देवता प्रचंड होने लगते, हमारे हाल भी बुरे होने लगते। थोड़ी देर में गंगा सागर की डुबकी ने हमें शीतलता प्रदान की। अब हमारे पास गीले कपड़ो का बोझ, जो की हर रोज कहीं न कहीं से हमारे कंधे पर होता ही था,और बाकी सब जरूरत का सामान लेकर हम राधे- राधे बोलते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। 


                                                                  


ऊँच गाँव में हमने एक वृद्ध ताऊजी के घर पर रुक कर, थोड़ा विश्राम किया।  वहां उन्होंने हमें घाल पिलायी। हमें अपने कपडे धोने के लिए जगह दी ,और विश्राम करवाया। गाँव के लोगो का ये प्रेम, हमें बहुत अच्छा लगा। किसी अनजान यात्री को शरण देना ,उनकी आवभगत करना ये इन गाँवो के भोले- भाले लोगो में ही होता है। जो बाते हम अब कहानियों में ही सुनते हैं, वे आज भी यहाँ सच है।सत्य तो ये है की इन सभी में भगवान् साक्षात् दिखाई देते हैं।

                                                               


अपनी थकान दूर करके हमने ताऊजी और उनके परिवार को धन्यवाद किया। अपने -अपने सामान के साथ आगे बढे। माधुरी वन में फार्म पर हमारा पड़ाव था, जो की अडिग गाँव में था। कुछ ही देर में सभी पहुँच गए। आज कड़ी और गरम- गरम फलके, हमारा इन्तजार कर रहे थे। बहुत अच्छा लगता था, सभी एक लाइन में नीचे बैठकर प्रसाद ग्रहण करते थे.  छोटा -बड़ा, जाती -पाती जैसी सभी बातों से ऊपर उठकर प्रसाद का आनंद लेते थे। अपने- अपने टैंट में स्वयं सेवा करके, हमने आराम किया ,अब तक सभी अपने शरीर के दर्द से ऊपर उठ चुके थे ,अब ये हमारी बातों का हिस्सा नहीं था, आज तो ताऊजी के ही चर्चे थे।शाम होने वाली है, अब हम राधे रानी की आरती करेंगे। भजन करेंगे ,प्रसाद ग्रहण कर ,अपने सामान की रोज की तरह पैकिंग करेंगे। बस ,अब  कल का इन्तजार था, कल की यात्रा करीब 25 -27 km की होगी, तो आज हमे जल्दी सोना था।  












सोमवार, 13 मार्च 2017

Braj 84 kos padyatra day 5

25/2/2017-मथुरा,द्वारकाधीश दर्शन,जन्म भूमि,नारद टीला,ध्रूव टीला। 

आज 25 km. चलना था। मैंने सबको मना लिया था की धीरे- धीरे ही सही पर मैं पदयात्रा ही करूंगी। हम सुबह 4 बजे निकले और यमुना स्नान करके महारानी यमुना जी उनके भाई धर्मराज  मंदिर के दर्शन किये।वहाँ से हमने कच्चा रास्ता लिया, खेतों के बीच में से होते हुए, हम द्वारकाधीश मंदिर पहुँचे  वहां  दर्शन किये।फिर हम  जन्मभूमि
 दर्शन  के लिए निकले। 


                                        
कृष्ण जन्म भूमि जहाँ भगवान् का जन्म हुआ था। यही वो बंदीगृह है जहाँ माता देवकी और पिता वासुदेव को रखा गया था।  यहाँ से हम 
महोली गाँव के लिए निकले। रस्ते में हमने भूतेश्वर और जयगुरुदेव मंदिर के दर्शन किये। कई मंदिर की फोटो लेना मना था। 






रास्ता खेतो से भरा था ,थकान होने के बाद भी ये प्रकृति के मनमोहक दृश्यों ने हमारा मन लगाए रखा। खेतों के बीच में छोटी- छोटी पगडण्डी को पार करना बहुत मुश्किल था। हमारे सामने वाले टैंट की  एक बूढ़ी चाची जी  का पैर फिसल गया, और वो गिर गयी ,उन्हें तुरंत सड़क पर गाड़ी तक पहुँचाया गया। कुछ न कुछ रोज होता रहता था, पर हम सभी के होंसले बहुत बुलंद थे ,मुश्किलें उन्हें तोड़ नहीं पायीं। रस्ते में विश्राम घाट और नारद टीला के दर्शन किये।



अब हम महोली गाँव हमारे पड़ाव पर पहुँच गए।आज टैंट तैयार नहीं था। ये 10 मिनिट इन्तजार  करना, बहुत भारी लग रहा था। जैसे ही टैंट लगा सभी ने प्रसाद लिया, अपना -अपना सामान रख कर पैरों की सेवा की, मैंने भी मेरे छाले पर मेहंदी लगायी। चाची जी  के हाथ कि हड्डी टूट गयी थी। डॉक्टर ने पट्टा बांध दिया था। चाची जी बहुत  ही बहादुर हैं ,उन्हें देख कर बिल्कुल भी नहीं लग रहा था, कि वो दर्द में है। शाम को वे हमारे साथ ध्रूव टीला गयी। जहां भक्त ध्रूव का मंदिर था ।आरती दर्शन कर हम भजन करते- करते पुनः लौट आये। आज हमारा पड़ाव मधुवन में था ,एक- दुसरे की सहायता करते हुए और कल की योजना बनाते हुए, समय निकल गया। रात में जानवरों के संगीत से नींद आ गयी। 






रविवार, 12 मार्च 2017

Braj 84 kos pad yatara day 4

24/2/2017 -ब्रह्माण्ड घाट ,उखलबन्धन ,चौरासी खम्बा ,रमण रेती। 

आज सुबह हम 3 बजे उठे रोज की तरह, लेकिन आज मेरे पैर का बुरा हाल था। मेरे पैर  के  हालात देख कर वहाँ के डॉक्टर ने मुझे पैदल चलने से मना कर दिया। मुझे बहुत अफ़सोस हो रहा था। कान्हा जी को बोल रही थी ,की ये क्या,आज तो तीसरा ही दिन है, और अभी से ही मेरी यात्रा में रूकावट शुरू हो गयी। मेरा दिल नहीं मान रहा था, मैं जिद करने लगी। लेकिन सरोज ने मेरी बात नहीं मानी, उसने मुझे कसम दी ,कि आज मैं गाड़ी में ही जाऊं। वे सब मुझे छोड़ कर जा रहे थे ,सरोज और मैं दोनों रो रहे थे। 




आज मैंने देखा सभी पद यात्रियों के जाने के बाद यहाँ के सेवक गण बहुत तेजी से टैंट हटाते है। सभी का सामान गाड़ी में डालते है पूरी पैकिंग करते हैं। बहुत मेहनत का काम है,कम से कम मंडल के 100 सेवक होते है, जो पूरे पड़ाव को एक जगह से दूसरे जगह तक पुनः स्थापित करते है, 500 लोगो की व्यवस्था करना आसान काम नहीं है। बहुत सारे लोग जो पदयात्रा नहीं कर पाते, वे सभी गाड़ियों से भी साथ- साथ चलते जाते है। जहाँ दर्शन होते है ,वहाँ सभी एक साथ मिल जाते हैं। मैं भी गाडी में बैठ कर यही सोच रही थी, की अब सभी से कहाँ मिलूंगी।तभी ब्रम्ह घाट आया, वहाँ हम स्नान आदि किये और आज शिवरात्रि है सो पीपल की परिक्रमा कर शिव जी के मंदिर में पूजा की। वहां से आगे जहाँ भगवान् कृष्ण को ऊखल से, माँ यशोदा ने बांधा था, वो स्थान देखा।  फिर हम रमण रेती पहुंचे। वहाँ मैंने सभी का इन्तजार किया।
 
                                                           

रमण रेती जहाँ राधा कृष्ण के चरण पड़े थे, जहां वे रास करते थे, खेलते थे। बहुत ही प्यारी जगह है , यहाँ की मान्यता है की जो भी यहाँ आते हैं वे इस रेत में रज जाते हैं ,सभी उस रज में लोट- पोट कर रहे थे, बहुत मजे आये। ये पावन मिट्टी आपके पूरे शरीर को छू जाये, इसिलए सब ऐसा करते है। वहाँ हम सभी भजन गा रहे थे , झूम रहे थे, नाच रहे थे ,मानो स्वयं कान्हा हम सभी के संग रास रचा रहे थे ,मैं ही नहीं सभी अपने शरीर के सभी दर्द को, मन के कष्ट को ,भूल कर भक्ति रास में लीन  थे। ये उस जगह का जादू था। बहुत आनंद आया।


                                                     

रमण रेती से आगे हमने चौरासी खम्बा राधा गोपीनाथ मंदिर के दर्शन किये। ये 5000 वर्ष पुराना मंदिर है। यहाँ 84 खम्बे है। ये महावन गाँव में है। यहाँ से निकल कर हम मथुरा के पास हमारे पड़ाव पर पहुँच गए। आज मैं बहुत जल्दी आ गयी थी। पर आज मैंने ये सोच लिया था कि मैं कल से पद यात्रा ही करूंगी, चाहे जो भी हो। कान्हा जी से प्रार्थना की, कि वे मुझे शक्ति दे। घाव पर दवाई लगाई, और आज आराम किया।  आज मैंने  देखा कि सभी सेवक कितनी जल्दी से पद यात्रियों के आने से पहले- पहले सभी कुछ कैसे  व्यवस्थित करते हैं,आज मेरे मन में इन सभी के लिए, सम्मान और भी बढ़ गया था। बस अब सरोज का इन्तजार कर रही थीऔर कल के लिए खुद को तैयार कर रही थी। 










शनिवार, 11 मार्च 2017

braj 84 kos padyatra day 3

२३/२/२०१७ --- बन्दी आनन्दी ,क्षीर सागर स्नान ,दाऊजी दर्शन। 

चारों तरफ खेत, सुबह के ३ बजे, अँधेरा फैला था। पर हमें  जल्दी से नित्यक्रिया करके तैयार होना था।यहाँ कोई शौचालय या कोई स्नानगृह कुछ भी नहीं  था। यहाँ बस आपकी जरूरत की सुविधा ही मिल रही थी। ये यात्रा अध्यात्म की थी, स्वयं की पहचान की थी ,जहाँ प्रभु दिखते नहीं हैं, परन्तु आपके साथ- साथ चलते है।  एक जंगल में सो कर उठना इतना सुहाना भी हो सकता। ये पहले कभी अनुभव नहीं किया था। हमे सुबह -सुबह  चाय और एक सूखे मेवे का पैकेट मिलता था। चाय तो हम पी लेते थे और मेवे का पैकेट रस्ते में खाने के लिए रख लेते थे ,जो हमें चलने  के लिए ऊर्जा देता है।  हमाराआज का  पड़ाव बलदेव गाँव में था। 




कुछ किलोमीटर चलने के बाद ,आज पैरों में कल से ज्यादा दर्द हो रहा था ,शायद छाला हो गया था। मैं और सरोज दोनों एक जगह रुके, और जूते उतार कर देखा तो, मेरे पैर में एक तलवे पर एक बड़ा  छाला हो गया था। बच्चों की जिद थी, कि जूतों से ही आराम रहेगा। लेकिन इस प्रकार की यात्रा हमेशा चपलों से ही करनी चाहिए। सभी आगे बढ़ते जा रहे थे। मेरी चपलें भी ट्रैक्टर में मेरे बैग के साथ चली गयी। अब इन जूतों के अलावा  कोई उपाय नहीं था। डर लगा,हम कहीं रास्ता भटक न जाये,  पर सरोज ने मुझे हिम्मत दी और हम धीरे- धीरे आगे बढ़ रहे थे। तभी पीछे से सेवकों का समूह आया। चार सेवक आगे,और चार पीछे रहते है, जो सभी का ध्यान रखते है ताकि कोई रास्ता भटक न जाये।ये बात बहुत अच्छी लगी ,कि मंडल के सेवकगण बहुत ध्यान रखने वाले थे। 




१२ km चलने के बाद, बन्दी -आनन्दी माई के  मंदिर के दर्शन किये। बन्दी -आनन्दी दोनों बहने हैं।  ये श्री कृष्ण भगवान् की कुल देवी हैं।यहाँ क्षीर सागर में स्नान कर, हमने मनसा माता के दर्शन किये। जहाँ यशोदा माता ने अपनी संतान की  मन्नत माँगी थी,और पूरी होने पर उन्होंने चाँदी की जीभ चढ़ाई थी। हमने भी  यहाँ प्रार्थना की। यहाँ से ४ km पर ही हमारा पड़ाव था बलदेव गाँव। कंधे पर एक स्पोर्ट बैग जिसमे पानी की बोतल, कुछ खाने का सामान, दवाई  ,टोर्च और छोटी- मोटी चीजें, सभी के साथ आगे बढे।



हम १ बजे तक यहाँ पहुच गए, पर मंदिर के पट बंद हो गए थे। तो हमने टेन्ट में  विश्राम कियाऔर  प्रसाद ग्रहण किया।हमारे साथ जो डॉक्टर थे उनको मेरा पैर दिखाया, उन्होंने छाले का पस निकाला और पट्टी कर दी।  फिर शाम को 5 बजे हम बलदेव जी के दर्शन के लिए गए, जहाँ हमने आरती की और बलदाऊ जी के दर्शन किये। वहाँ कई सन्तो के दर्शन भी हुए। भजन करते- करते हम पुनः अपने पड़ाव पर आ गए। जहाँ हमने प्रसाद लिया, सभी लोग जो डायरी लिखते थे, वे लिखने बैठ गए ,सरोज भी लिखती थी और मैं उसे याद कर- कर के बताती  थी। हमें हर  टैंट में एक बल्ब, और एक मोबाइल चार्जर का बोर्ड मिल जाता था,हम बारी- बारी से चार्ज कर लेते थे। घर वालों से बात करके हम सुबह की तैयारी में जुट गए।  कल सुबह 4 बजे  चलना था। रात के सन्नाटे में खुद के मन की आवाज बहुत अच्छे से सुनाई देती है। आज मैं मेरे पैर के छाले को देख कर एक बार घबरा गई थी, लेकिन उस से लड़कर फिर आगे बढ़ी और तब मैंने महसूस किया कि कोई भी दर्द ,कोई भी दुख ,कोई भी तकलीफ ,कोई भी सुख या कोई भी खुशी सभी एक समय तक ही हमारे साथ होते हैं। उस एक समय के बाद हमारी सोच में हमारी स्थिति में स्वत ही परिवर्तन आ जाता है ,कोई भी सुख हो या दुख निरंतर कभी नहीं चलता। निरंतर परिवर्तन यही हमारी प्रकृति है और यही इस संसार का नियम। मैंने कभी स्वयं से एकांत में बातें नहीं की पर आज मैं अपने मन से बातें कर रही थी। मुझ में भी एक बहुत बड़ा परिवर्तन आ रहा था। अभी तो यात्रा शुरू ही हुई है न जाने कौन कौन से परिवर्तन आने बाकी है। कल के इंतजार में शुभ रात्रि। राधे राधे।








शुक्रवार, 10 मार्च 2017

Braj 84 kos padyatra day 2

२२/२/२०१७ ----पदयात्रा का पहला दिन -यमुना जी ,मानसरोवर, राधे चरण ,राया गाँव। 







                           

आज सुबह 3 :00  बजे उठ कर हमने  नित्य क्रिया की,बैग पैक किये और करीब 4 :00 बजे हम  जयपुर मंदिर पहुँच गए।इतने विशाल और सुन्दर मंदिर को देख कर आँखे पूरी तरह खुल  गयी।  यहाँ  प्रभु की आरती करके प्रसाद,चरणामृत ग्रहण किया। कान्हा जी का आशीर्वाद लेकर,  हमारी यात्रा प्रारम्भ हुई। संघ का ध्वज और राधा जी का छोटा सा मंदिर हमारे साथ था। यहाँ से हम जमुना जी पहुँचे। जहाँ पंडित जी  ने  हमारी कुशल यात्रा के लिए संकल्प करवाया। 






                                          

अब जुते  पहन कर हम यात्रा पर निकल गए। अब, बस हमें चलना था, कितनी दूर पता नहीं।सुबह-सुबह का समय बहुत ही प्यारा होता है।  सूर्योदय के समय जब धरती पर अलग-अलग  रंग अपना जादू चलाते है ,वो दृश्य देखने में बहुत ही मोहक होता है।धरती के इस रंग का हम आनन्द लेते हुए चल रहे थे। कभी खेतों से कभी सड़क से गुजरते हुए राधे- राधे  बोलते हुए चलते जा रहे थे।  समय बढ़ता जा रहा था और धुप भी। पहला दिन, साँसे फूलने लगी थी ,तभी मानसरोवर के दर्शन हुए वहाँ डुबकी लगाई और आगे बढे।




हमारा विश्राम राया गाँव में गणेश धाम पर था। जो कि वृन्दावन से 16 km पर था।  हम रस्ते में रुक- रुक कर कभी पानी, कभी चाय का सहारा ले रहे थे ,हमने आधा रास्ता तो पर कर लिया था पर मंजिल अभी दूर थी। हमारे आगे पीछे लगभग 500 लोगो का काफ़िला चल रहा था। जिसमें 60 -70 -80 साल तक की वृद्ध महिलायें भी थी। उन्हें देख कर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिल रही थी।





 रस्ते में राधा रानी के कई नए- पुराने मंदिरो के दर्शन किये। उनका रूप आँखों में  उतर गया था।  यहाँ आकर महसूस होता है की ये किस्से- कहानियाँ जो हम, बचपन से सुनते आये हैं, वे मात्र कल्पना नहीं हो सकती।  यहाँ सत्य की अनुभूति होती है। यहाँ राधे चरण के दर्शन भी किये।


                                                                  

                                                         
राधे रानी के दर्शनों से हमे आगे चलने की शक्ति मिल रही थी। सभी मंदिरो के दर्शन कर आगे बढ़ते जा रहे थे । कदम बहुत रुक- रुक कर चल रहे थे।अब विश्राम स्थल पास ही था।बस, अब तो तम्बू दिखने लग गए हैं , उन्हें देख कर इतनी ख़ुशी मिली की मैं आपको बता नहीं सकती। पहला दिन 16 km खुद को शाबासी देने का मन कर रहा था। इस मंडल के सेवक, जो हमारा आगे से आगे ख़याल रखते है, हमारे लिए पहले से ही पूरी व्यवस्था करते है उनका कार्य बहुत सराहनीय है।  हमने  उनका धन्यवाद किया। उन्होंने हमारे लिए भोजन,प्रसाद  भी तैयार कर रखा था। प्रसाद ग्रहण कर हम अपने- अपने टेन्ट में चले गए। यहाँ 8 -9 जनों को मिल कर एक तंबू मिलता है।  हमारे तम्बू का नम्बर 17 था।




टैंट में जाते ही सभी के बैग में से तेल, बाम ,मूव सभी कुछ निकलने लगता  है, और फिर होती है अपने  पैरों की सेवा। हम आज दोपहर 2 :00 बजे तक पहुच गए थे। शाम 5 :00 बजे तक विश्राम किया चाय पी कर सभी, गाँव के मंदिरो के दर्शन करने निकल गए। शाम को हमारी राधे रानी की आरती की, और भजन गाये। मन बहुत खुश हो गया। मैं और सरोज दोनों ही आज थक कर भीबहुत  खुश थे।  अपने घर वालों को फ़ोन पर दिन भर का हाल सूना रहे थे। अब रात ने पैर पसार लिए थे, चारों तरफ से कुछ जानवरों का शोर था कभी सन्नाटा था,आज डर लग रहा था पहली बार एक टैंट में सो रहे थे। ऐसा लग रहा था की कभी भी कोई घुस गया तो ,थकान से नींद आ रही थी, पर मन का डर सोने नहीं दे रहा था,दोनों की लड़ाई में  हमें कब नींद आ गयी पता भी नहीं  चला। 


















गुरुवार, 9 मार्च 2017

Braj Chourasi Kos Padyatra of UP day1


 ये  ब्लॉग किस्से कहानियों का है। इस बार मैं  ऐसी ही जीवन के अनुपम आनन्द की यात्रा की कहानी बता रही हूँ।ब्रज की  84 कोस की पदयात्रा, जो 20दिनों की है। यकीन मानिये, इस यात्रा का अनुभव, एक नयी दुनिया से मिलवाता है। आपके भीतर, एक नये व्यक्तित्व की पहचान करवाता है। यूँ तो जीवन के पग- पग पर, आपको बहुत कुछ सीखने को मिलता है, परन्तु सीखते- सीखते जब अनायास ही आपको कुछ ऐसा मिल जाये जो  आपकी सोच से परे  हो,  तो उसका आनंद ही अलग होता है।ये यात्रा मेरी माँ चन्दा देवी ने की है। मैं उन्ही के शब्दों और भावों को आपसे साझा कर  रही हूँ।
हमारी यात्रा जयपुर से दिनांक २०/२ /२०१७ को, गोविन्द देव जी के दर्शन करके प्रारम्भ हुई।ये मेरी पहली यात्रा है, जो मैं, मेरे परिवार के साथ नहीं कर रही।  मैं और मेरी सहेली सरोज   हम दोनों  ट्रैन से रवाना होकर सुबह 7 बजे वृन्दावन पहुँचे। यहाँ चारों तरफ से आने वाले सभी  यात्रियों को एकजुट होना था। राजस्थान से  अलग- अलग कई ग्रुप आये थे।  हम दोनों को यहाँ  कई जान- पहचान वाले भी मिल गए। कहीं बाहर, जब  हमारे गाँव का  कोई  मिल जाता है, तो वो भी हमारे पहचान वाला ही हो जाता है। बस इसी तरह मिलते- मिलते हमारा एक ग्रुप बन गया। हमारी पद यात्रा दिनांक  22 की भोर से शुरू होनी थी, तो आज हमें वृन्दावन में कान्हा के  दिव्य दर्शन करने है।





                                                ध


                                                           जय श्री बाँके बिहारी की                                                                                                        
अति  सुन्दर रूप के  दर्शन करके मन आत्मविभोर हो गया। कान्हा के मुख से नजरें हटना ही नहीं चाहती थी।जैसे  ये दो नैना सभी से बाते कर रहे हो। मन का भाव कब आपकी आँखों से छलकने लगता है आपको पता ही नहीं चलता। वहाँ ज्यादा देर खड़ा नहीं रहने देते पर एक झलक भी बहुत कुछ कह जाती है।
  
निधि वन
                                                                वैष्णो देवी धाम

                                                          

                                                              
आज सुबह से हमनें वृन्दावन दर्शन किये थे। निधि वन, जहाँ श्री कृष्ण अर्धरात्रि के बाद राधा संग रास- रचाते है।
यहाँ के कण -कण में कन्हाई के होने का आभास मिल रहा था। इस वन में एक रहस्यमयी  वातावरण है, जो आपमें बहुत- कुछ जानने की जिज्ञासा उत्पन्न करता है। 
मानो तो पत्थर में भी भगवान् है, और नहीं, तो कहीं भी नहीं। ये तो आपकी आस्था, और श्रद्धा   की बात है। हम तो कृष्ण की नगरी में कृष्णमयि  हो  गए थे।  वन का कोना- कोना कान्हा के रंग में रंगा था।
 वहां से हम वैष्णो धाम गए।  बहुत ही विशाल और आकर्षक मंदिर है ।
 प्रेम मंदिर के कान्हा से तो सच में ही प्रेम हो जाता है। इतनी प्यारी और मनमोहक सूरत है, की जी नहीं भरता। अंत में पागल बाबा मंदिर के दर्शन कर हम धर्मशाला में पहुँच गए। 
कल भोर में 3 :00 बजे उठना था। इसीलिए सभी को भोजन कर सोने के निर्देश दे दिए गए थे। 
ये यात्रा राधा रसिक मंडल की तरफ से संचालित की जाती है। वे आगे से आगे निर्देश देते रहते है ,हम सभी यात्री उनको मानते है। पूरी यात्रा में  भोजन ,रहना और मेडिकल से जुडी सभी प्रकार की व्यवस्था राधा रसिक मंडल द्वारा ही की जाती है। 
मैं और सरोज दोनों सो रहे थे,पर अंदर कुछ सवाल थे, जो अभी- अभी ही प्रकट हुए थे। क्या इतनी लम्बी पदयात्रा कर पाएंगे ???मुझे तो बी पी ,शुगर ,थाईराइड सब है तो बीच में कुछ हुआ तो ????मैंने सरोज को ४-५ दिन के घूमने का कोई कार्यक्रम बनाने को कहा था, पर अचानक से कान्हा जी का बुलावा आ गया।   संजोग से हम दोनों पहली बार अपने परिवारों से दूर यहाँ थे। घर से सभी फ़ोन कर- करके हमारे हालचाल ले रहे थे। हम दोनों ने ईश्वर से प्रार्थना की और कहा- हे मुरली मनोहर हमारी नैया भी पर कर देना, बिना किसी व्यवधान के हम पूरी यात्रा का आनन्द उठायेऔर सकुशल अपने घर जाकर सभी को यहाँ के लिए प्रेरित करे। हमें  कब नींद आने लगी, पता ही नहीं चला जैसे कान्हा स्वयं हमारी चिंता दूर करने आ गए थे।