शनिवार, 23 दिसंबर 2017

Braj 84 kos padyatra ke pal day 20

13/3/17-
 मथुरा- वृन्दावन में आकर यहाँ की होली में हम कुछ सखियों ने भाग लिया,और अपने परिवार के साथ कान्हा की नगरी में अद्भुत आंनद प्राप्त किया।जिस प्रकार हमारे शरीर में हमारी सांसो का वास है, बिना उसके ये शरीर कुछ भी नहीं, ठीक उसी प्रकार इस सम्पूर्ण जगत में कण- कण में कान्हा  का वास है। यदि किसी को प्रमाण चाहिए तो, एक बार ब्रज की रज में जरूर आना ,यहाँ आने मात्र से ही कान्हा का आभास होने लगेगा। यहाँ की हवा में, फिजा में, पेड़ में , फूल में, पत्ती में, मिट्टी में,यहाँ के लोगो में ,मंदिरों में ,हर पल गूंजते राधे कृष्णा के संगीत में ,हर छोटे से छोटे कण में बस वही- बांके बिहारी, गोविन्द गिरधारी ही वास करते हैं। जीवन में एक बार ये यात्रा जरूर करें कान्हा के साक्षात्कार करने के लिए। 
यात्रा की कुछ यादें ----























राधे राधे। 

Braj 84 kos padyatra day 19

12/3/17--भांडीरवन ,वंशीवट ,जमुना जी ,जयपुर मंदिर।

पदयात्रा का अंतिम दिन ,ये रात बहुत जल्दी बीत गयी। उठाने के लिए बजने वाली घंटी की आवाज कानो तक आने लगी।'' उठ जाओ सा ,मंजन कुल्ला कर ल्यो सा ''------सभी आवाजें आज मुझे बहुत ही अच्छी लग रही थी। कल से ये सभी कुछ हम बहुत याद करेंगे। आज रोज की तरह यहाँ से जल्दी तैयार होकर जाने का मन नहीं कर रहा ,क्यों की आज मुझे पता है की कल से ना ये भोर होगी ,ना ये  टैंट रहेगा ,ना ये उठाने के लिए आवाजें होंगी ,ना ये गरम गरम चाय होगी ,ना ही हमें कहीं जाने की जल्दी ,और ना ही  सबसे प्यारा ये  सखियों का साथ होगा।
आज सुबह से दिल गा रहा था ---अभी ना जाओ छोड़ कर ----------
तभी सरोज ने जोर से  बोला- अरे कहाँ खो गयी, चल आरती का समय हो गया है।  सुबह 4:00 बजे हम सबने मिल कर आरती की और यात्रा प्रारम्भ की। जब हमें किसी चीज या पल  के खोने का अहसास होता है, तो उस वस्तु या पल की उपयोगिता हमारे लिए और भी ज्यादा बढ़ जाती है। आज मेरे साथ भी यही हो रहा है,अब तक रोज होने वाली आम बातें, आज बहुत ख़ास लग रही थी। ये कच्चे पक्के रास्ते, रास्तों को दिखती ये टॉर्च,कंधे पर टंगा हर पल साथ निभाता ये बैग ,इन सभी का हमारी यात्रा में बहुत योगदान रहा। हर एक छोटी से छोटी बात आज सीधे दिल में उतर रही थी। आज यात्रा को सम्पूर्ण करने की ख़ुशी थी , क्यों की ये मेरे जीवन का बहुत ही साहसी कदम था, पर साथ ही निरंतर चलती इस गति को, इस यात्रा को, प्रकृति के साथ को खोने का गम भी था।

कभी साथ साथ कभी आगे पीछे चलते चलते हम लोग भांडीरवन पहुँचे। इस स्थान का बहुत महत्त्व है। यूँ तो राधे रानी भगवान् श्री कृष्ण की पत्नी नहीं हैं ,परन्तु गर्ग संहिता के अनुसार स्वयं भगवान् ब्रम्हा जी  यहाँ पर श्री कृष्ण और राधे रानी की विवाह लीला के साक्षी रहे हैं। उन्होंने ही उनका विवाह करवाया था। विवाह के पश्चात कान्हा ने  कई दिनों तक राधे रानी के साथ इसी भांडीरवन रास लीला की थी।विशाल वटवृक्ष के नीचे ये विवाह स्थल बहुत ही रमणीय स्थान है। इस वन के सभी पेड़ मात्र वृक्ष नहीं हैं ये सभी उस अनुपम लीला के साक्षी हैं। कहते है मथुरा - वृन्दावन की इस सम्पूर्ण यात्रा में आये प्रत्येक वन -उपवन ,लताएं सभी वे गोप गोपियाँ हैं वे साक्षी है जो भगवान् की रास लीला में उनकी सहायता करते थे और आनंद लेते थे प्रभु की अनुपम लीलाओं का। इसलिए यहाँ का प्रत्येक वृक्ष पूजनीय है.आते जाते सभी लोग इन वृक्षों को प्रणाम करते हुए जाते हैं। यहाँ के ये वन सचमुच बहुत सुंदर, आकर्षित और भिन्न आकर के हैं। आखिर ये कान्हा की नगरी है इससे ज्यादा सुन्दर और क्या हो सकता है।    
यहाँ से थोड़ी ही दूर बलदाऊ जी का मंदिर है जहाँ उन्होने प्रलम्बासुर का वध किया था। यहाँ के दर्शन कर हम वंशीवट पहुंचे। विशाल महारास स्थली जहाँ कान्हा जी और राधा जी के चरण दर्शन भी है। शरद पूर्णिमा के दिन कान्हा यहाँ वंशी वट के नीचे बांसुरी बजाते थे, जिसे सुनकर सभी गोपियाँ राधा अपने काम  छोड़ कर, यहाँ दौड़ी चली आती थी,कान्हा के साथ रास करने। हर गोपी के साथ उसके कान्हा नृत्य करते थे, जितनी गोपियाँ उतने कान्हा। कहते है आज भी गोपियों और कान्हा का महारास प्रत्येक शरदपूर्णिमा पर यहाँ होता है। यहाँ निरंतर बांसुरी की आवाज सुनाई देती है, वंशी वट में भगवान् की बाँसुरी आज भी गूंजती हैं। यहाँ की हवा में, पेड़ों के पत्तों में, मंदिर की घंटियों में ,एक मधुर संगीत है जो महसूस करने पर सुनाई देता है।  काश ये वन- उपवन निरंतर  चलते रहे, कान्हा की लीला उनकी बाते बस मैं यूँ  ही सुनती रहूँ।यह सब कभी समाप्त न हो ये यात्रा तो पूरे जीवन भर चलती रहे। आज यहाँ से जाने का मन नहीं  कर रहा, ऐसा बस मैं ही नहीं सोच रही, मेरी सभी सखियाँ भी आज उतनी ही व्यथित हैं जितनी मै हूँ।
पास ही जमुना जी का वो किनारा था, जहाँ से हमने यात्रा प्रारम्भ करने का संकल्प लिया था। आज फिर से हम
वहीं यात्रा सम्पूर्ण करके पहुँच गए। ऐसा लग रहा था , जैसे अभी तक, हम सभी को किसी ने एक धागे में पिरो कर एक माला बनायीं हुई थी  और अब वो माला टूट कर बिखरने वाली है। हम सभी के हाथों में संकल्प पूर्ण करने के लिए जल था, और आँखों से गंगा जमुना की धारा बह रही थी,सभी अपने आप को रोक नहीं पा रहे थे। हम लोग बहुत भावुक होकर रोने लगे, गले मिल कर फिर से मिलने की आशा कर रहे थे। जिनके पास फोन थे उनके नंबर लिए और सम्पर्क में रहने को कहा।  जयपुर मंदिर जाकर सभी ने प्रसाद ग्रहण किया और सभी अपने होटल वाले कमरे पर पहुँचे, जहाँ हम सभी के परिवार के सदस्य हमारा इन्तजार कर रहे थे। जिन्होंने हमारा  शानदार स्वागत किया। एक परिवार को हम अभी -अभी छोड़ कर आये थे ,इसीलिए मन दुखी हो रहा था।  वहीं अपने परिवार के सदस्यों का यूँ मिलना हम सभी की आँखों में ख़ुशी भर लाया। 

अद्भुत, अकल्पनीय, अविस्मरणीय,
अनुभव जो हमेशा हमारी यादों में जीवित रहेगा। 
                              राधे राधे। 

मंगलवार, 19 दिसंबर 2017

Braj 84 kos padyatra day 18

 11/3/17-अक्षय वट ,चीर घाट ,नन्द घाट ,भद्रवन। 


रात्रि में आये तूफ़ान के कारण सभी कुछ व्यवस्थित करने में बहुत समय लगा, इसीलिए आज  सुबह 6:00 बजे यात्रा शुरू हुई।हल्के हल्के कोहरे की चादर छठ गयी थी। दूर दूर तक बिल्कुल साफ़ और सुन्दर नज़ारे सूर्य की रौशनी से खिल उठे थे।  लगभग 9 किलोमीटर चलने के बाद अक्षय वट आया, यूँ तो अक्षय वट प्रयाग में स्थित है।  जिसके विषय में कई पुस्तकों में लिखा गया है किन्तु, यहाँ वृन्दावन में भी एक अक्षय वट प्रसिद्द है ,जहाँ दुर्वाषा ऋषि ने तपस्या की थी और कई दिनों तक विश्राम किया था ,यहाँ यमुना जी के किनारे उनका मंदिर है। बसंत पंचमी पर यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है। वहां दर्शन इत्यादि करने के बाद हम आगे चीर घाट की ओर बढ़ने लगे।

  चीर घाट वही घाट है जहां श्री कृष्ण ने नहाते हुए गोपियों के कपड़े चुराए थे। यहाँ कदम्ब वृक्ष के नीचे घाट  पर कात्यायनी व्रत हेतु गोपियाँ स्नान करने आती थी। व्रत के अंतिम दिन श्री कृष्ण ने स्वयं वहाँ पधारकर वस्त्रहरण के बहाने उनको मनोभिलाषित वर प्रदान किया था। चीर घाट पर हम सभी ने नए वस्त्र साड़ियां इत्यादि चढ़ाई दर्शन किए। 

आगे नंदघाट दर्शन के लिए रवाना हो गए जहां पर बाबा नंद अपने गांव से नहाने आते थे। हमने भी नंद घाट में जाकर यमुना जी में डुबकी लगाई और पानी में खूब खेले एक दुसरे पर पानी उछाल कर हम सभी ने आपस में बहुत मस्ती की। यात्रा के इस अंतिम पड़ाव पर हम हर पल आनंद बटोर रहे थे। मात्र दो दिन की पदयात्रा ही शेष थी। इतने दिनों के साथ ने हम सभी के बीच की सभी दीवारों को मिटा कर एक परिवार की तरह जोड़ दिया था। यहाँ से आज हमें नाव में बैठकर यमुना जी के उस पार जाना है।यहाँ कई नाँव किनारे पर लगी हुई थी। जिनमें थोड़े थोड़े लोग बैठ कर जाने लगे, बीच में हमने  गंगा जमुना के संगम का दर्शन किया। यमुना जी के उस पार पहुँच कर हमने पुनः पैदल यात्रा प्रारंभ की





हमें भद्रवन पहुंचना था, जहां पर हमारा विश्रामगृह था।
ठन्डे पानी ने हम सभी में नयी ताजगी भर दी थी सभी के चेहरे खिल रहे थे हसी मजाक का वातावरण बना हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे यमुना जी ने हमारी थकान हमारे दर्द सभी ले लिए। शरीर और मन के सभी बोझ हम जमुना जी में ही छोड़ आये थे। ना जाने आज हमारे कदम चल रहे थे या जमीन यमुना जी से भद्रवन का रास्ता कब पार हो गया पता ही नहीं चला। आज पानी में कई देर तक रहने के कारण बहुत जोर से भूख लगी सभी ने मिल कर प्रसाद ग्रहण किया और सभी ने एक साथ मिल कर समय बिताने का निश्चय किया। बस दो दिन ही शेष है ये बात बार बार सभी के जुबान पर आ रही थी।  लेकिन आज भी मौसम का मिज़ाज कुछ ठीक नहीं था। तेज हवाओं के साथ बारिश की बौछारें आने लगी। हम सभी को कल रात्रि का अनुभव था , सभी अपने -अपने टैंट की तरफ भागने लगे। यहाँ आस पास कोई रुकने का दूसरा स्थान नहीं था। इसलिए सभी ने  अपने तंबुओं के चारों तरफ बड़ी-बड़ी मिट्टी की दीवारें खड़ी की ताकि हमारे टैंट में पानी ना भरे और हमारा सामान उन तंबू में सुरक्षित रह सके। ईश्वर की हम सबसे अद्भुत कृति हैं, हर एक परिस्थिति में रहने के हम अपने रस्ते निकाल ही लेते है। कुछ तो जादू है इस यात्रा में ,चाहे जैसी भी समस्या हो हमारे मन कभी घबराये नहीं कान्हा पर अटूट विश्वास हमें अँधेरे में रौशनी की तरह रास्ता दिखाता रहता था। आंधी ,तूफ़ान, बारिश सभी बस हमें छु कर चले गए। चारों तरफ  शांति छा गयी,उस शांति को चीरती हुई आवाज आने लगी ,गोविन्द बोलो हरी  गोपाल बोलो --------ढोलकी और झांझर की आवाज में भजन होने लगे। आरती का समय हो गया था हम सभी ने बहुत आनंद के साथ आरती की और भजन गाये।   इस समय यहां का वातावरण अद्भुत हो जाता है दूर दूर तक पूरी प्रकृति हमारे साथ नाचती गाती है। हरे कृष्णा के रंग में सभी कुछ कृष्ण कृष्ण हो जाता है। 
    राधे राधे। 

Braj 84 kos padyatra Day 17

10/3/17-नन्द बाबा का प्राचीन मंदिर ,गौशाला ,बिहार वन।

अंधेरे में छुपी रोशनी अंगड़ाई भर रही थी। भोर  के 4:00 बज रहे थे। सर्दियों की ठंडी -ठंडी सुबह में सभी शॉल और स्वेटर पहन कर यात्रा पर निकलने के लिए तैयार हो रहे थे, तभी सरोज ने कहा- बस अब 3 दिन और मजे कर लो, फिर तो बस घर में, वही घोड़े और वही मैदान। हम सभी सुनकर खूब जोर -जोर से ठहाके मार -मार कर हंसने लगे। हमारी हंसी के पीछे कहीं ना कहीं हमारे बिछड़ने का दर्द भी छुपा हुआ था। जो आज तो नहीं लेकिन जल्दी ही सामने आने वाला था।

आज हमारे कदम बिहार वन की तरफ बढ़ रहे थे जहां हमारा आज का पड़ाव था। रास्ते में 2 किलोमीटर अंदर जाकर यमुना जी के किनारे भगवान बलदेव जी के पूरे परिवार का प्राचीन मंदिर था।
हम सभी ने दर्शन कर थोड़ा विश्राम किया और खेत की पगडंडियों में से होते हुए कच्चे रास्ते से बिहार वन की तरफ निकल पड़े। बिहार वन में हम नंद बाबा की गौशाला पहुंचे जहॉ मंजरी गाय और नंदबाबा के समय से चली गो वंशावली के दर्शन किए। यहां बहुत बड़े-बड़े क्षेत्र में गौशाला बनी हुई है परंतु गायों को स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, पुराने समय की गौशाला आज भी उसी पुराने ढर्रे पर ही चल रही है, यह देख कर बहुत अच्छा नहीं लगा। आशा करती हूं कि जब तक हम अगली बार यहां आएंगे शायद यहां की स्थिति बहुत बेहतर होगी। हम सभी ने वहां अपनी श्रद्धा अनुसार दान किया और अपने विश्राम ग्रह के लिए रवाना हो गए।
दोपहर का भोजन कर हम सभी विश्राम कर रहे थे करीब एक-दो घंटे बाद चारों तरफ से आसमान में काले बादल घिर आए हमारी संध्या आरती और भजन का समय हो गया थाहम जहां पर रुके थे वहीं पास में एक मंदिर भी था । तेज बारिश आने के आसार लग रहे थे, इसीलिए सभी मंदिर में जा जाकर अपनी -अपनी जगह रोक रहे थे ।हमने भी सोचा कि हम हमारा सामान धीरे-धीरे करके उस मंदिर के बरामदे  में रख लेते हैं। अचानक, बहुत तेज तूफान जैसी हवाएं चलने लगी बादल गरजने लगे बिजली कड़कने लगी मेरे हाथ में दो बैग लेकर मैं मंदिर मे पहुंच गई। मेरी सभी सखियां भी आने ही वाली थी कि तभी बहुत तेज बारिश भी शुरू हो गई। काफी लोग टेंट खाली करके मंदिर में अपनी-अपनी जगह रोक चुके थे लेकिन मेरे टेंट में सरोज, रंजू, ममता और भी कई लोग फस गए थे। मैं लाचार होकर दूर बरामदे से उनको देख रही थी और वह टैंट के चारों कोने पकड़कर टेंट को हवा में उड़ने से बचाने के लिए उस तेज बारिश और तूफान से लड़ रही थी ।हम सभी का अभी बहुत सामान टेंट में ही पड़ा था। वहां राधावल्लभ नाम के सेवक ने हमारी बहुत मदद की हमारा सामान उस तेज बारिश में टेंट से मंदिर तक पहुंचाया। पूरा सामान आने तक मेरी सभी सखियां सर्दी में उस तेज बारिश में भीगती रही और उस टेंट को पकड़कर खड़ी रही यह सब देखकर मुझे बहुत अफसोस हो रहा था, लेकिन मैं कुछ भी नहीं कर पा रही थी। करीब 1 घंटे बाद बारिश थमी और सभी कुछ सामान्य होने लगा. हमारे बरामदे  में एक छोटा सा चूल्हा था । यहां गरम-गरम पूरियां छन  रही थी ,सब्जियां पहले ही बनकर तैयार हो रखी थी ,ठंडे ठंडे मौसम में सभी ने गरम-गरम प्रसाद ग्रहण किया और अपने-अपने सोने के लिए कोना  ढूंढने लगे मैं और सरोज इसी चूल्हे की गर्मी के पास ही अपना बिस्तर लगा कर सो गए। चारों तरफ सन्नाटा था सर्दी की रातें थी आज एक- एक रजाई भी कम पड़ रही थी ,सभी अपनी रजाई पकड़-पकड़कर सिकुड़ सिकुड़कर सो रहे थे। नींद में मुझे और सरोज को कुछ अजीब- अजीब सी आवाजें आने लगी, हमने अपनी टोर्च जलाई तो देखा कि हमारे साथ- साथ हमारे अंदर घुस- घुस कर वहां के आसपास के कुत्ते और कुत्ते के बच्चे भी सो रहे थे।हम पूरी रात उन्हें डरा डरा कर भगाते रहे , और तेज ठंड की वजह से वह कुत्ते पूरी रात हमारे आसपास हमारे अगल बगल में घुस कर सोते रहे, इस प्रकार हमने यह पूरी रात कुत्तों के साथ सोकर बिताई।यदि हमारा ध्यान हमारे लक्ष्य पर हो तो कितनी भी असामान्य परिस्थितियाँ हो हम बहुत सरलता से उन्हें स्वीकार कर उसमें ढल जाते हैं या उन्हें हमारे अनुकूल बना लेते हैं। राधे राधे।