गुरुवार, 9 मार्च 2017

Braj Chourasi Kos Padyatra of UP day1


 ये  ब्लॉग किस्से कहानियों का है। इस बार मैं  ऐसी ही जीवन के अनुपम आनन्द की यात्रा की कहानी बता रही हूँ।ब्रज की  84 कोस की पदयात्रा, जो 20दिनों की है। यकीन मानिये, इस यात्रा का अनुभव, एक नयी दुनिया से मिलवाता है। आपके भीतर, एक नये व्यक्तित्व की पहचान करवाता है। यूँ तो जीवन के पग- पग पर, आपको बहुत कुछ सीखने को मिलता है, परन्तु सीखते- सीखते जब अनायास ही आपको कुछ ऐसा मिल जाये जो  आपकी सोच से परे  हो,  तो उसका आनंद ही अलग होता है।ये यात्रा मेरी माँ चन्दा देवी ने की है। मैं उन्ही के शब्दों और भावों को आपसे साझा कर  रही हूँ।
हमारी यात्रा जयपुर से दिनांक २०/२ /२०१७ को, गोविन्द देव जी के दर्शन करके प्रारम्भ हुई।ये मेरी पहली यात्रा है, जो मैं, मेरे परिवार के साथ नहीं कर रही।  मैं और मेरी सहेली सरोज   हम दोनों  ट्रैन से रवाना होकर सुबह 7 बजे वृन्दावन पहुँचे। यहाँ चारों तरफ से आने वाले सभी  यात्रियों को एकजुट होना था। राजस्थान से  अलग- अलग कई ग्रुप आये थे।  हम दोनों को यहाँ  कई जान- पहचान वाले भी मिल गए। कहीं बाहर, जब  हमारे गाँव का  कोई  मिल जाता है, तो वो भी हमारे पहचान वाला ही हो जाता है। बस इसी तरह मिलते- मिलते हमारा एक ग्रुप बन गया। हमारी पद यात्रा दिनांक  22 की भोर से शुरू होनी थी, तो आज हमें वृन्दावन में कान्हा के  दिव्य दर्शन करने है।





                                                ध


                                                           जय श्री बाँके बिहारी की                                                                                                        
अति  सुन्दर रूप के  दर्शन करके मन आत्मविभोर हो गया। कान्हा के मुख से नजरें हटना ही नहीं चाहती थी।जैसे  ये दो नैना सभी से बाते कर रहे हो। मन का भाव कब आपकी आँखों से छलकने लगता है आपको पता ही नहीं चलता। वहाँ ज्यादा देर खड़ा नहीं रहने देते पर एक झलक भी बहुत कुछ कह जाती है।
  
निधि वन
                                                                वैष्णो देवी धाम

                                                          

                                                              
आज सुबह से हमनें वृन्दावन दर्शन किये थे। निधि वन, जहाँ श्री कृष्ण अर्धरात्रि के बाद राधा संग रास- रचाते है।
यहाँ के कण -कण में कन्हाई के होने का आभास मिल रहा था। इस वन में एक रहस्यमयी  वातावरण है, जो आपमें बहुत- कुछ जानने की जिज्ञासा उत्पन्न करता है। 
मानो तो पत्थर में भी भगवान् है, और नहीं, तो कहीं भी नहीं। ये तो आपकी आस्था, और श्रद्धा   की बात है। हम तो कृष्ण की नगरी में कृष्णमयि  हो  गए थे।  वन का कोना- कोना कान्हा के रंग में रंगा था।
 वहां से हम वैष्णो धाम गए।  बहुत ही विशाल और आकर्षक मंदिर है ।
 प्रेम मंदिर के कान्हा से तो सच में ही प्रेम हो जाता है। इतनी प्यारी और मनमोहक सूरत है, की जी नहीं भरता। अंत में पागल बाबा मंदिर के दर्शन कर हम धर्मशाला में पहुँच गए। 
कल भोर में 3 :00 बजे उठना था। इसीलिए सभी को भोजन कर सोने के निर्देश दे दिए गए थे। 
ये यात्रा राधा रसिक मंडल की तरफ से संचालित की जाती है। वे आगे से आगे निर्देश देते रहते है ,हम सभी यात्री उनको मानते है। पूरी यात्रा में  भोजन ,रहना और मेडिकल से जुडी सभी प्रकार की व्यवस्था राधा रसिक मंडल द्वारा ही की जाती है। 
मैं और सरोज दोनों सो रहे थे,पर अंदर कुछ सवाल थे, जो अभी- अभी ही प्रकट हुए थे। क्या इतनी लम्बी पदयात्रा कर पाएंगे ???मुझे तो बी पी ,शुगर ,थाईराइड सब है तो बीच में कुछ हुआ तो ????मैंने सरोज को ४-५ दिन के घूमने का कोई कार्यक्रम बनाने को कहा था, पर अचानक से कान्हा जी का बुलावा आ गया।   संजोग से हम दोनों पहली बार अपने परिवारों से दूर यहाँ थे। घर से सभी फ़ोन कर- करके हमारे हालचाल ले रहे थे। हम दोनों ने ईश्वर से प्रार्थना की और कहा- हे मुरली मनोहर हमारी नैया भी पर कर देना, बिना किसी व्यवधान के हम पूरी यात्रा का आनन्द उठायेऔर सकुशल अपने घर जाकर सभी को यहाँ के लिए प्रेरित करे। हमें  कब नींद आने लगी, पता ही नहीं चला जैसे कान्हा स्वयं हमारी चिंता दूर करने आ गए थे। 





















































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