शुक्रवार, 10 मार्च 2017

Braj 84 kos padyatra day 2

२२/२/२०१७ ----पदयात्रा का पहला दिन -यमुना जी ,मानसरोवर, राधे चरण ,राया गाँव। 







                           

आज सुबह 3 :00  बजे उठ कर हमने  नित्य क्रिया की,बैग पैक किये और करीब 4 :00 बजे हम  जयपुर मंदिर पहुँच गए।इतने विशाल और सुन्दर मंदिर को देख कर आँखे पूरी तरह खुल  गयी।  यहाँ  प्रभु की आरती करके प्रसाद,चरणामृत ग्रहण किया। कान्हा जी का आशीर्वाद लेकर,  हमारी यात्रा प्रारम्भ हुई। संघ का ध्वज और राधा जी का छोटा सा मंदिर हमारे साथ था। यहाँ से हम जमुना जी पहुँचे। जहाँ पंडित जी  ने  हमारी कुशल यात्रा के लिए संकल्प करवाया। 






                                          

अब जुते  पहन कर हम यात्रा पर निकल गए। अब, बस हमें चलना था, कितनी दूर पता नहीं।सुबह-सुबह का समय बहुत ही प्यारा होता है।  सूर्योदय के समय जब धरती पर अलग-अलग  रंग अपना जादू चलाते है ,वो दृश्य देखने में बहुत ही मोहक होता है।धरती के इस रंग का हम आनन्द लेते हुए चल रहे थे। कभी खेतों से कभी सड़क से गुजरते हुए राधे- राधे  बोलते हुए चलते जा रहे थे।  समय बढ़ता जा रहा था और धुप भी। पहला दिन, साँसे फूलने लगी थी ,तभी मानसरोवर के दर्शन हुए वहाँ डुबकी लगाई और आगे बढे।




हमारा विश्राम राया गाँव में गणेश धाम पर था। जो कि वृन्दावन से 16 km पर था।  हम रस्ते में रुक- रुक कर कभी पानी, कभी चाय का सहारा ले रहे थे ,हमने आधा रास्ता तो पर कर लिया था पर मंजिल अभी दूर थी। हमारे आगे पीछे लगभग 500 लोगो का काफ़िला चल रहा था। जिसमें 60 -70 -80 साल तक की वृद्ध महिलायें भी थी। उन्हें देख कर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिल रही थी।





 रस्ते में राधा रानी के कई नए- पुराने मंदिरो के दर्शन किये। उनका रूप आँखों में  उतर गया था।  यहाँ आकर महसूस होता है की ये किस्से- कहानियाँ जो हम, बचपन से सुनते आये हैं, वे मात्र कल्पना नहीं हो सकती।  यहाँ सत्य की अनुभूति होती है। यहाँ राधे चरण के दर्शन भी किये।


                                                                  

                                                         
राधे रानी के दर्शनों से हमे आगे चलने की शक्ति मिल रही थी। सभी मंदिरो के दर्शन कर आगे बढ़ते जा रहे थे । कदम बहुत रुक- रुक कर चल रहे थे।अब विश्राम स्थल पास ही था।बस, अब तो तम्बू दिखने लग गए हैं , उन्हें देख कर इतनी ख़ुशी मिली की मैं आपको बता नहीं सकती। पहला दिन 16 km खुद को शाबासी देने का मन कर रहा था। इस मंडल के सेवक, जो हमारा आगे से आगे ख़याल रखते है, हमारे लिए पहले से ही पूरी व्यवस्था करते है उनका कार्य बहुत सराहनीय है।  हमने  उनका धन्यवाद किया। उन्होंने हमारे लिए भोजन,प्रसाद  भी तैयार कर रखा था। प्रसाद ग्रहण कर हम अपने- अपने टेन्ट में चले गए। यहाँ 8 -9 जनों को मिल कर एक तंबू मिलता है।  हमारे तम्बू का नम्बर 17 था।




टैंट में जाते ही सभी के बैग में से तेल, बाम ,मूव सभी कुछ निकलने लगता  है, और फिर होती है अपने  पैरों की सेवा। हम आज दोपहर 2 :00 बजे तक पहुच गए थे। शाम 5 :00 बजे तक विश्राम किया चाय पी कर सभी, गाँव के मंदिरो के दर्शन करने निकल गए। शाम को हमारी राधे रानी की आरती की, और भजन गाये। मन बहुत खुश हो गया। मैं और सरोज दोनों ही आज थक कर भीबहुत  खुश थे।  अपने घर वालों को फ़ोन पर दिन भर का हाल सूना रहे थे। अब रात ने पैर पसार लिए थे, चारों तरफ से कुछ जानवरों का शोर था कभी सन्नाटा था,आज डर लग रहा था पहली बार एक टैंट में सो रहे थे। ऐसा लग रहा था की कभी भी कोई घुस गया तो ,थकान से नींद आ रही थी, पर मन का डर सोने नहीं दे रहा था,दोनों की लड़ाई में  हमें कब नींद आ गयी पता भी नहीं  चला। 


















2 टिप्‍पणियां: