रविवार, 12 मार्च 2017

Braj 84 kos pad yatara day 4

24/2/2017 -ब्रह्माण्ड घाट ,उखलबन्धन ,चौरासी खम्बा ,रमण रेती। 

आज सुबह हम 3 बजे उठे रोज की तरह, लेकिन आज मेरे पैर का बुरा हाल था। मेरे पैर  के  हालात देख कर वहाँ के डॉक्टर ने मुझे पैदल चलने से मना कर दिया। मुझे बहुत अफ़सोस हो रहा था। कान्हा जी को बोल रही थी ,की ये क्या,आज तो तीसरा ही दिन है, और अभी से ही मेरी यात्रा में रूकावट शुरू हो गयी। मेरा दिल नहीं मान रहा था, मैं जिद करने लगी। लेकिन सरोज ने मेरी बात नहीं मानी, उसने मुझे कसम दी ,कि आज मैं गाड़ी में ही जाऊं। वे सब मुझे छोड़ कर जा रहे थे ,सरोज और मैं दोनों रो रहे थे। 




आज मैंने देखा सभी पद यात्रियों के जाने के बाद यहाँ के सेवक गण बहुत तेजी से टैंट हटाते है। सभी का सामान गाड़ी में डालते है पूरी पैकिंग करते हैं। बहुत मेहनत का काम है,कम से कम मंडल के 100 सेवक होते है, जो पूरे पड़ाव को एक जगह से दूसरे जगह तक पुनः स्थापित करते है, 500 लोगो की व्यवस्था करना आसान काम नहीं है। बहुत सारे लोग जो पदयात्रा नहीं कर पाते, वे सभी गाड़ियों से भी साथ- साथ चलते जाते है। जहाँ दर्शन होते है ,वहाँ सभी एक साथ मिल जाते हैं। मैं भी गाडी में बैठ कर यही सोच रही थी, की अब सभी से कहाँ मिलूंगी।तभी ब्रम्ह घाट आया, वहाँ हम स्नान आदि किये और आज शिवरात्रि है सो पीपल की परिक्रमा कर शिव जी के मंदिर में पूजा की। वहां से आगे जहाँ भगवान् कृष्ण को ऊखल से, माँ यशोदा ने बांधा था, वो स्थान देखा।  फिर हम रमण रेती पहुंचे। वहाँ मैंने सभी का इन्तजार किया।
 
                                                           

रमण रेती जहाँ राधा कृष्ण के चरण पड़े थे, जहां वे रास करते थे, खेलते थे। बहुत ही प्यारी जगह है , यहाँ की मान्यता है की जो भी यहाँ आते हैं वे इस रेत में रज जाते हैं ,सभी उस रज में लोट- पोट कर रहे थे, बहुत मजे आये। ये पावन मिट्टी आपके पूरे शरीर को छू जाये, इसिलए सब ऐसा करते है। वहाँ हम सभी भजन गा रहे थे , झूम रहे थे, नाच रहे थे ,मानो स्वयं कान्हा हम सभी के संग रास रचा रहे थे ,मैं ही नहीं सभी अपने शरीर के सभी दर्द को, मन के कष्ट को ,भूल कर भक्ति रास में लीन  थे। ये उस जगह का जादू था। बहुत आनंद आया।


                                                     

रमण रेती से आगे हमने चौरासी खम्बा राधा गोपीनाथ मंदिर के दर्शन किये। ये 5000 वर्ष पुराना मंदिर है। यहाँ 84 खम्बे है। ये महावन गाँव में है। यहाँ से निकल कर हम मथुरा के पास हमारे पड़ाव पर पहुँच गए। आज मैं बहुत जल्दी आ गयी थी। पर आज मैंने ये सोच लिया था कि मैं कल से पद यात्रा ही करूंगी, चाहे जो भी हो। कान्हा जी से प्रार्थना की, कि वे मुझे शक्ति दे। घाव पर दवाई लगाई, और आज आराम किया।  आज मैंने  देखा कि सभी सेवक कितनी जल्दी से पद यात्रियों के आने से पहले- पहले सभी कुछ कैसे  व्यवस्थित करते हैं,आज मेरे मन में इन सभी के लिए, सम्मान और भी बढ़ गया था। बस अब सरोज का इन्तजार कर रही थीऔर कल के लिए खुद को तैयार कर रही थी। 










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