शुक्रवार, 17 मार्च 2017

Braj 84 kos padyatra day 7

27 /2 /2017 -गोवर्धन परिक्रमा ,उध्वकुण्ड ,राधा कृष्ण कुंड। 



हम 3 बजे उठे, और सभी नित्य क्रिया के लिए जल्दी- जल्दी भागे। एक बात, जो रोज मैं उठते ही सोचती थी।  इतनी बड़ी पदयात्रा जहाँ हर साल हजारों लोग आते हैं। ये यात्रा साल में 2 से 3 बार होती है कई संघ और मंडल इसे संचालित करते हैं। इस यात्रा का बहुत बड़ा महत्त्व है, परंतु इसके बावजूद सरकार का इस तरफ कोई ध्यान नहीं है ,सुलभ शौचालय तो है ही नहीं, यहाँ तक की गावों के घरों में भी आज तक पूरे शौचालय नहीं बने। यात्री गण मजबूर होते हैं इधर- उधर जाने को। 




4 बजे हमने  अडिग गाँव आकर गोवर्धन की परिक्रमा प्रारम्भ की। ये परिक्रमा हम सभी ने नंगे पैर की थी। मैंने तो घाव की वजह से मोज़े पहने थे परंतु सरोज, रंजू  बाकी सभी यात्री भी नंगे पैर ही चल रहे थे। हमारे समुह में बहुत से ऐसे भी थे, जो पूरी यात्रा ही बिना जूते और चप्पल के कर रहे थे। आज हमें गोवर्धन की आधी यात्रा करनी थी। कल भी हम गोवर्धन ही रुकेंगे और पूरी यात्रा करेंगे। पहले हमें 10 km चलना है मानसी गंगा के लिए। आज रस्ते में पहाड़ों  के खूबसूरत नज़ारे देखने को मिल रहे थे। अब तक हम खेतों का मजा ले रहे थे। अब पहाड़ों के किनारे- किनारे खूबसूरत रस्ते पर चल रहे थे। एक ही पल में आपने कभी सुख -दुःख दोनों का मजा लिया है ?यकीन करिये हमारी आँखे प्रकृति के नज़ारे देख- देख कर खुश हो रही थी और पैर में चुभते छोटे- छोटे कंकर अलग ही मजा दे रहे थे। हम दोनों मजे लेते- लेते मानसी गंगा पहुँचे।वहाँ स्नान कर पूजा अर्चना की और कुछ फल इत्यादि खाकर आगे बढे ।



                                                  

आगे हमें राधा कुण्ड की 9km की परिक्रमा करके कूलेल कुण्ड पहुँचना था ।जहाँ आज हमें विश्राम करना था ।करीब 1:30बजे हम  हमारे विश्राम स्थल पर पहुँच गये ।जहाँ हमने प्रसाद ग्रहण किया और स्वयं सेवा कर थोड़ा आराम किया ।


 
शाम को पता चला, की दान  घाटी मंदिर में छप्पन भोग के दर्शन है ,तो हम सभी जल्दी से तैयार होकर ऑटो से मंदिर पहुँचे ।वहाँ का दृश्य बहुत सुन्दर था ।आज वहाँ फूलों के शृंगार की झांकी सजी थी ।छप्पन भोग सजा था ।इतने मनमोहक दर्शन पाकर मन प्रफुल्लित हो उठा ।हमने  आरती के दर्शन किये ,छप्पन भोग का प्रसाद और ऑटो से ही पुन: कूलेल कुण्ड पहुँच गये ।                                                                                                       


                                                    
राधे रानी की आरती कर,भजन किये,  हम सबने प्रसाद लिया और अपने- अपने टैंट में जाकर आज की झांकी की चर्चा करने लगे ।सच कहूँ तो यहाँ के सभी सदस्यों के मन में यही बात थी, की ये यात्रा बहुत ही दुर्लभ है, हम बहुत ही भाग्यशाली है, जो हमें कान्हा ने अपनी नगरी में बुलाया ।सेवक गण बता रहे थे, कल और भी ज्यादा आनँद आने वाला है ।हम अपने सामान पैक करके सोने की तैयारी करने लगे। रात को मन में कभी कभी ऐसे भाव आते थे ,कि ऐ काश, हमारा पूरा जीवन इस प्रकार यात्रा में ही निकल जाये। घर से रिश्ते- नातों से सभी से एक विरक्ति होने लगती थी। परन्तु ये भाव कुछ समय के लिए ही होते थे ,सुबह उठकर फिर हम नयी दुनिया में मगन हो जाते थे। मैंने पिछले अंक में कहा था इस यात्रा में बहुत सारे अनुभव एक साथ होते है। मैं बस इन्ही भावों का आनंद लेते- लेते सो गयी। 









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