शनिवार, 11 मार्च 2017

braj 84 kos padyatra day 3

२३/२/२०१७ --- बन्दी आनन्दी ,क्षीर सागर स्नान ,दाऊजी दर्शन। 

चारों तरफ खेत, सुबह के ३ बजे, अँधेरा फैला था। पर हमें  जल्दी से नित्यक्रिया करके तैयार होना था।यहाँ कोई शौचालय या कोई स्नानगृह कुछ भी नहीं  था। यहाँ बस आपकी जरूरत की सुविधा ही मिल रही थी। ये यात्रा अध्यात्म की थी, स्वयं की पहचान की थी ,जहाँ प्रभु दिखते नहीं हैं, परन्तु आपके साथ- साथ चलते है।  एक जंगल में सो कर उठना इतना सुहाना भी हो सकता। ये पहले कभी अनुभव नहीं किया था। हमे सुबह -सुबह  चाय और एक सूखे मेवे का पैकेट मिलता था। चाय तो हम पी लेते थे और मेवे का पैकेट रस्ते में खाने के लिए रख लेते थे ,जो हमें चलने  के लिए ऊर्जा देता है।  हमाराआज का  पड़ाव बलदेव गाँव में था। 




कुछ किलोमीटर चलने के बाद ,आज पैरों में कल से ज्यादा दर्द हो रहा था ,शायद छाला हो गया था। मैं और सरोज दोनों एक जगह रुके, और जूते उतार कर देखा तो, मेरे पैर में एक तलवे पर एक बड़ा  छाला हो गया था। बच्चों की जिद थी, कि जूतों से ही आराम रहेगा। लेकिन इस प्रकार की यात्रा हमेशा चपलों से ही करनी चाहिए। सभी आगे बढ़ते जा रहे थे। मेरी चपलें भी ट्रैक्टर में मेरे बैग के साथ चली गयी। अब इन जूतों के अलावा  कोई उपाय नहीं था। डर लगा,हम कहीं रास्ता भटक न जाये,  पर सरोज ने मुझे हिम्मत दी और हम धीरे- धीरे आगे बढ़ रहे थे। तभी पीछे से सेवकों का समूह आया। चार सेवक आगे,और चार पीछे रहते है, जो सभी का ध्यान रखते है ताकि कोई रास्ता भटक न जाये।ये बात बहुत अच्छी लगी ,कि मंडल के सेवकगण बहुत ध्यान रखने वाले थे। 




१२ km चलने के बाद, बन्दी -आनन्दी माई के  मंदिर के दर्शन किये। बन्दी -आनन्दी दोनों बहने हैं।  ये श्री कृष्ण भगवान् की कुल देवी हैं।यहाँ क्षीर सागर में स्नान कर, हमने मनसा माता के दर्शन किये। जहाँ यशोदा माता ने अपनी संतान की  मन्नत माँगी थी,और पूरी होने पर उन्होंने चाँदी की जीभ चढ़ाई थी। हमने भी  यहाँ प्रार्थना की। यहाँ से ४ km पर ही हमारा पड़ाव था बलदेव गाँव। कंधे पर एक स्पोर्ट बैग जिसमे पानी की बोतल, कुछ खाने का सामान, दवाई  ,टोर्च और छोटी- मोटी चीजें, सभी के साथ आगे बढे।



हम १ बजे तक यहाँ पहुच गए, पर मंदिर के पट बंद हो गए थे। तो हमने टेन्ट में  विश्राम कियाऔर  प्रसाद ग्रहण किया।हमारे साथ जो डॉक्टर थे उनको मेरा पैर दिखाया, उन्होंने छाले का पस निकाला और पट्टी कर दी।  फिर शाम को 5 बजे हम बलदेव जी के दर्शन के लिए गए, जहाँ हमने आरती की और बलदाऊ जी के दर्शन किये। वहाँ कई सन्तो के दर्शन भी हुए। भजन करते- करते हम पुनः अपने पड़ाव पर आ गए। जहाँ हमने प्रसाद लिया, सभी लोग जो डायरी लिखते थे, वे लिखने बैठ गए ,सरोज भी लिखती थी और मैं उसे याद कर- कर के बताती  थी। हमें हर  टैंट में एक बल्ब, और एक मोबाइल चार्जर का बोर्ड मिल जाता था,हम बारी- बारी से चार्ज कर लेते थे। घर वालों से बात करके हम सुबह की तैयारी में जुट गए।  कल सुबह 4 बजे  चलना था। रात के सन्नाटे में खुद के मन की आवाज बहुत अच्छे से सुनाई देती है। आज मैं मेरे पैर के छाले को देख कर एक बार घबरा गई थी, लेकिन उस से लड़कर फिर आगे बढ़ी और तब मैंने महसूस किया कि कोई भी दर्द ,कोई भी दुख ,कोई भी तकलीफ ,कोई भी सुख या कोई भी खुशी सभी एक समय तक ही हमारे साथ होते हैं। उस एक समय के बाद हमारी सोच में हमारी स्थिति में स्वत ही परिवर्तन आ जाता है ,कोई भी सुख हो या दुख निरंतर कभी नहीं चलता। निरंतर परिवर्तन यही हमारी प्रकृति है और यही इस संसार का नियम। मैंने कभी स्वयं से एकांत में बातें नहीं की पर आज मैं अपने मन से बातें कर रही थी। मुझ में भी एक बहुत बड़ा परिवर्तन आ रहा था। अभी तो यात्रा शुरू ही हुई है न जाने कौन कौन से परिवर्तन आने बाकी है। कल के इंतजार में शुभ रात्रि। राधे राधे।








1 टिप्पणी:

  1. Ek bulb ek charging socket.. simit sansadhon se unki value aur pata lagati Hai. Aur gair jaroori kam bhi nahin.. mamma hostel type mahol main raha rahin thi

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