26/2/2017-ताल वन ,कुमुद वन ,गंगासागर ,कपिल देव ,शांतनु कुंड।
आज सुबह हम 5 बजे यात्रा पर निकले। जब हमें बहुत ज्यादा km. चलना होता है, तो हम जल्दी निकलते हैं। आज 10 -12 km. ही चलना था। हमारे इस समूह में करीब- करीब सभी उम्र के लोग हैं , बच्चों को छोड़ कर। मैंने देखा, सभी अलग- अलग भाव लेकर यात्रा पर चलते हैं। कुछ धर्म से जोड़ते हैं ,कुछ जिज्ञासा से चलते हैं, ,कुछ स्वयं की परीक्षा के लिए चलते है ,कुछ कान्हा की भक्ति में चलते है ,तो कुछ, एक बहुत बड़ा तीर्थ पूरा करने के लिए चलते हैं। मैं और सरोज, हम इस यात्रा पर एक अलग अनुभव करने के लिए निकले थे। हम आस्था ,धर्म, भक्ति और इस प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य को ,एक साथ आत्मसात कर रहे थे। ये वो अनुभव थे, जो आप कुछ दिनों की पूरी प्लानिंग के साथ की गयी यात्रा पर, नहीं महसूस कर सकते। यहाँ नहीं पता था, की कल क्या होगा? अच्छा- बुरा,सुखः दुःख ,आंनद ,विरक्ति, कब ,कोनसा भाव,कौनसा पल, हमारा इन्तजार कर रहा है।यही इस यात्रा कि खूबसूरती है।
तालवन में हमनें दाऊजी ,नंदबाबा ,रेवती ,कृष्ण राधा मंदिर के दर्शन किये। वहां सेआगे बढ़कर हमने कपिल मुनि और चैतन्य महाप्रभु मंदिर के दर्शन किये। हम लोग 11 बजे तक तो आराम से चल लेते थे, पर जैसे ही सूर्य देवता प्रचंड होने लगते, हमारे हाल भी बुरे होने लगते। थोड़ी देर में गंगा सागर की डुबकी ने हमें शीतलता प्रदान की। अब हमारे पास गीले कपड़ो का बोझ, जो की हर रोज कहीं न कहीं से हमारे कंधे पर होता ही था,और बाकी सब जरूरत का सामान लेकर हम राधे- राधे बोलते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे।
ऊँच गाँव में हमने एक वृद्ध ताऊजी के घर पर रुक कर, थोड़ा विश्राम किया। वहां उन्होंने हमें घाल पिलायी। हमें अपने कपडे धोने के लिए जगह दी ,और विश्राम करवाया। गाँव के लोगो का ये प्रेम, हमें बहुत अच्छा लगा। किसी अनजान यात्री को शरण देना ,उनकी आवभगत करना ये इन गाँवो के भोले- भाले लोगो में ही होता है। जो बाते हम अब कहानियों में ही सुनते हैं, वे आज भी यहाँ सच है।सत्य तो ये है की इन सभी में भगवान् साक्षात् दिखाई देते हैं।
अपनी थकान दूर करके हमने ताऊजी और उनके परिवार को धन्यवाद किया। अपने -अपने सामान के साथ आगे बढे। माधुरी वन में फार्म पर हमारा पड़ाव था, जो की अडिग गाँव में था। कुछ ही देर में सभी पहुँच गए। आज कड़ी और गरम- गरम फलके, हमारा इन्तजार कर रहे थे। बहुत अच्छा लगता था, सभी एक लाइन में नीचे बैठकर प्रसाद ग्रहण करते थे. छोटा -बड़ा, जाती -पाती जैसी सभी बातों से ऊपर उठकर प्रसाद का आनंद लेते थे। अपने- अपने टैंट में स्वयं सेवा करके, हमने आराम किया ,अब तक सभी अपने शरीर के दर्द से ऊपर उठ चुके थे ,अब ये हमारी बातों का हिस्सा नहीं था, आज तो ताऊजी के ही चर्चे थे।शाम होने वाली है, अब हम राधे रानी की आरती करेंगे। भजन करेंगे ,प्रसाद ग्रहण कर ,अपने सामान की रोज की तरह पैकिंग करेंगे। बस ,अब कल का इन्तजार था, कल की यात्रा करीब 25 -27 km की होगी, तो आज हमे जल्दी सोना था।
Well written..Agree sab kuch na kuch alag pane pahunchne the..And liked that part .. sab kuch bhoola kar log em sath prashad lete hain
जवाब देंहटाएं