शनिवार, 23 दिसंबर 2017

Braj 84 kos padyatra day 19

12/3/17--भांडीरवन ,वंशीवट ,जमुना जी ,जयपुर मंदिर।

पदयात्रा का अंतिम दिन ,ये रात बहुत जल्दी बीत गयी। उठाने के लिए बजने वाली घंटी की आवाज कानो तक आने लगी।'' उठ जाओ सा ,मंजन कुल्ला कर ल्यो सा ''------सभी आवाजें आज मुझे बहुत ही अच्छी लग रही थी। कल से ये सभी कुछ हम बहुत याद करेंगे। आज रोज की तरह यहाँ से जल्दी तैयार होकर जाने का मन नहीं कर रहा ,क्यों की आज मुझे पता है की कल से ना ये भोर होगी ,ना ये  टैंट रहेगा ,ना ये उठाने के लिए आवाजें होंगी ,ना ये गरम गरम चाय होगी ,ना ही हमें कहीं जाने की जल्दी ,और ना ही  सबसे प्यारा ये  सखियों का साथ होगा।
आज सुबह से दिल गा रहा था ---अभी ना जाओ छोड़ कर ----------
तभी सरोज ने जोर से  बोला- अरे कहाँ खो गयी, चल आरती का समय हो गया है।  सुबह 4:00 बजे हम सबने मिल कर आरती की और यात्रा प्रारम्भ की। जब हमें किसी चीज या पल  के खोने का अहसास होता है, तो उस वस्तु या पल की उपयोगिता हमारे लिए और भी ज्यादा बढ़ जाती है। आज मेरे साथ भी यही हो रहा है,अब तक रोज होने वाली आम बातें, आज बहुत ख़ास लग रही थी। ये कच्चे पक्के रास्ते, रास्तों को दिखती ये टॉर्च,कंधे पर टंगा हर पल साथ निभाता ये बैग ,इन सभी का हमारी यात्रा में बहुत योगदान रहा। हर एक छोटी से छोटी बात आज सीधे दिल में उतर रही थी। आज यात्रा को सम्पूर्ण करने की ख़ुशी थी , क्यों की ये मेरे जीवन का बहुत ही साहसी कदम था, पर साथ ही निरंतर चलती इस गति को, इस यात्रा को, प्रकृति के साथ को खोने का गम भी था।

कभी साथ साथ कभी आगे पीछे चलते चलते हम लोग भांडीरवन पहुँचे। इस स्थान का बहुत महत्त्व है। यूँ तो राधे रानी भगवान् श्री कृष्ण की पत्नी नहीं हैं ,परन्तु गर्ग संहिता के अनुसार स्वयं भगवान् ब्रम्हा जी  यहाँ पर श्री कृष्ण और राधे रानी की विवाह लीला के साक्षी रहे हैं। उन्होंने ही उनका विवाह करवाया था। विवाह के पश्चात कान्हा ने  कई दिनों तक राधे रानी के साथ इसी भांडीरवन रास लीला की थी।विशाल वटवृक्ष के नीचे ये विवाह स्थल बहुत ही रमणीय स्थान है। इस वन के सभी पेड़ मात्र वृक्ष नहीं हैं ये सभी उस अनुपम लीला के साक्षी हैं। कहते है मथुरा - वृन्दावन की इस सम्पूर्ण यात्रा में आये प्रत्येक वन -उपवन ,लताएं सभी वे गोप गोपियाँ हैं वे साक्षी है जो भगवान् की रास लीला में उनकी सहायता करते थे और आनंद लेते थे प्रभु की अनुपम लीलाओं का। इसलिए यहाँ का प्रत्येक वृक्ष पूजनीय है.आते जाते सभी लोग इन वृक्षों को प्रणाम करते हुए जाते हैं। यहाँ के ये वन सचमुच बहुत सुंदर, आकर्षित और भिन्न आकर के हैं। आखिर ये कान्हा की नगरी है इससे ज्यादा सुन्दर और क्या हो सकता है।    
यहाँ से थोड़ी ही दूर बलदाऊ जी का मंदिर है जहाँ उन्होने प्रलम्बासुर का वध किया था। यहाँ के दर्शन कर हम वंशीवट पहुंचे। विशाल महारास स्थली जहाँ कान्हा जी और राधा जी के चरण दर्शन भी है। शरद पूर्णिमा के दिन कान्हा यहाँ वंशी वट के नीचे बांसुरी बजाते थे, जिसे सुनकर सभी गोपियाँ राधा अपने काम  छोड़ कर, यहाँ दौड़ी चली आती थी,कान्हा के साथ रास करने। हर गोपी के साथ उसके कान्हा नृत्य करते थे, जितनी गोपियाँ उतने कान्हा। कहते है आज भी गोपियों और कान्हा का महारास प्रत्येक शरदपूर्णिमा पर यहाँ होता है। यहाँ निरंतर बांसुरी की आवाज सुनाई देती है, वंशी वट में भगवान् की बाँसुरी आज भी गूंजती हैं। यहाँ की हवा में, पेड़ों के पत्तों में, मंदिर की घंटियों में ,एक मधुर संगीत है जो महसूस करने पर सुनाई देता है।  काश ये वन- उपवन निरंतर  चलते रहे, कान्हा की लीला उनकी बाते बस मैं यूँ  ही सुनती रहूँ।यह सब कभी समाप्त न हो ये यात्रा तो पूरे जीवन भर चलती रहे। आज यहाँ से जाने का मन नहीं  कर रहा, ऐसा बस मैं ही नहीं सोच रही, मेरी सभी सखियाँ भी आज उतनी ही व्यथित हैं जितनी मै हूँ।
पास ही जमुना जी का वो किनारा था, जहाँ से हमने यात्रा प्रारम्भ करने का संकल्प लिया था। आज फिर से हम
वहीं यात्रा सम्पूर्ण करके पहुँच गए। ऐसा लग रहा था , जैसे अभी तक, हम सभी को किसी ने एक धागे में पिरो कर एक माला बनायीं हुई थी  और अब वो माला टूट कर बिखरने वाली है। हम सभी के हाथों में संकल्प पूर्ण करने के लिए जल था, और आँखों से गंगा जमुना की धारा बह रही थी,सभी अपने आप को रोक नहीं पा रहे थे। हम लोग बहुत भावुक होकर रोने लगे, गले मिल कर फिर से मिलने की आशा कर रहे थे। जिनके पास फोन थे उनके नंबर लिए और सम्पर्क में रहने को कहा।  जयपुर मंदिर जाकर सभी ने प्रसाद ग्रहण किया और सभी अपने होटल वाले कमरे पर पहुँचे, जहाँ हम सभी के परिवार के सदस्य हमारा इन्तजार कर रहे थे। जिन्होंने हमारा  शानदार स्वागत किया। एक परिवार को हम अभी -अभी छोड़ कर आये थे ,इसीलिए मन दुखी हो रहा था।  वहीं अपने परिवार के सदस्यों का यूँ मिलना हम सभी की आँखों में ख़ुशी भर लाया। 

अद्भुत, अकल्पनीय, अविस्मरणीय,
अनुभव जो हमेशा हमारी यादों में जीवित रहेगा। 
                              राधे राधे। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें