मंगलवार, 19 दिसंबर 2017

Braj 84 kos padyatra Day 17

10/3/17-नन्द बाबा का प्राचीन मंदिर ,गौशाला ,बिहार वन।

अंधेरे में छुपी रोशनी अंगड़ाई भर रही थी। भोर  के 4:00 बज रहे थे। सर्दियों की ठंडी -ठंडी सुबह में सभी शॉल और स्वेटर पहन कर यात्रा पर निकलने के लिए तैयार हो रहे थे, तभी सरोज ने कहा- बस अब 3 दिन और मजे कर लो, फिर तो बस घर में, वही घोड़े और वही मैदान। हम सभी सुनकर खूब जोर -जोर से ठहाके मार -मार कर हंसने लगे। हमारी हंसी के पीछे कहीं ना कहीं हमारे बिछड़ने का दर्द भी छुपा हुआ था। जो आज तो नहीं लेकिन जल्दी ही सामने आने वाला था।

आज हमारे कदम बिहार वन की तरफ बढ़ रहे थे जहां हमारा आज का पड़ाव था। रास्ते में 2 किलोमीटर अंदर जाकर यमुना जी के किनारे भगवान बलदेव जी के पूरे परिवार का प्राचीन मंदिर था।
हम सभी ने दर्शन कर थोड़ा विश्राम किया और खेत की पगडंडियों में से होते हुए कच्चे रास्ते से बिहार वन की तरफ निकल पड़े। बिहार वन में हम नंद बाबा की गौशाला पहुंचे जहॉ मंजरी गाय और नंदबाबा के समय से चली गो वंशावली के दर्शन किए। यहां बहुत बड़े-बड़े क्षेत्र में गौशाला बनी हुई है परंतु गायों को स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, पुराने समय की गौशाला आज भी उसी पुराने ढर्रे पर ही चल रही है, यह देख कर बहुत अच्छा नहीं लगा। आशा करती हूं कि जब तक हम अगली बार यहां आएंगे शायद यहां की स्थिति बहुत बेहतर होगी। हम सभी ने वहां अपनी श्रद्धा अनुसार दान किया और अपने विश्राम ग्रह के लिए रवाना हो गए।
दोपहर का भोजन कर हम सभी विश्राम कर रहे थे करीब एक-दो घंटे बाद चारों तरफ से आसमान में काले बादल घिर आए हमारी संध्या आरती और भजन का समय हो गया थाहम जहां पर रुके थे वहीं पास में एक मंदिर भी था । तेज बारिश आने के आसार लग रहे थे, इसीलिए सभी मंदिर में जा जाकर अपनी -अपनी जगह रोक रहे थे ।हमने भी सोचा कि हम हमारा सामान धीरे-धीरे करके उस मंदिर के बरामदे  में रख लेते हैं। अचानक, बहुत तेज तूफान जैसी हवाएं चलने लगी बादल गरजने लगे बिजली कड़कने लगी मेरे हाथ में दो बैग लेकर मैं मंदिर मे पहुंच गई। मेरी सभी सखियां भी आने ही वाली थी कि तभी बहुत तेज बारिश भी शुरू हो गई। काफी लोग टेंट खाली करके मंदिर में अपनी-अपनी जगह रोक चुके थे लेकिन मेरे टेंट में सरोज, रंजू, ममता और भी कई लोग फस गए थे। मैं लाचार होकर दूर बरामदे से उनको देख रही थी और वह टैंट के चारों कोने पकड़कर टेंट को हवा में उड़ने से बचाने के लिए उस तेज बारिश और तूफान से लड़ रही थी ।हम सभी का अभी बहुत सामान टेंट में ही पड़ा था। वहां राधावल्लभ नाम के सेवक ने हमारी बहुत मदद की हमारा सामान उस तेज बारिश में टेंट से मंदिर तक पहुंचाया। पूरा सामान आने तक मेरी सभी सखियां सर्दी में उस तेज बारिश में भीगती रही और उस टेंट को पकड़कर खड़ी रही यह सब देखकर मुझे बहुत अफसोस हो रहा था, लेकिन मैं कुछ भी नहीं कर पा रही थी। करीब 1 घंटे बाद बारिश थमी और सभी कुछ सामान्य होने लगा. हमारे बरामदे  में एक छोटा सा चूल्हा था । यहां गरम-गरम पूरियां छन  रही थी ,सब्जियां पहले ही बनकर तैयार हो रखी थी ,ठंडे ठंडे मौसम में सभी ने गरम-गरम प्रसाद ग्रहण किया और अपने-अपने सोने के लिए कोना  ढूंढने लगे मैं और सरोज इसी चूल्हे की गर्मी के पास ही अपना बिस्तर लगा कर सो गए। चारों तरफ सन्नाटा था सर्दी की रातें थी आज एक- एक रजाई भी कम पड़ रही थी ,सभी अपनी रजाई पकड़-पकड़कर सिकुड़ सिकुड़कर सो रहे थे। नींद में मुझे और सरोज को कुछ अजीब- अजीब सी आवाजें आने लगी, हमने अपनी टोर्च जलाई तो देखा कि हमारे साथ- साथ हमारे अंदर घुस- घुस कर वहां के आसपास के कुत्ते और कुत्ते के बच्चे भी सो रहे थे।हम पूरी रात उन्हें डरा डरा कर भगाते रहे , और तेज ठंड की वजह से वह कुत्ते पूरी रात हमारे आसपास हमारे अगल बगल में घुस कर सोते रहे, इस प्रकार हमने यह पूरी रात कुत्तों के साथ सोकर बिताई।यदि हमारा ध्यान हमारे लक्ष्य पर हो तो कितनी भी असामान्य परिस्थितियाँ हो हम बहुत सरलता से उन्हें स्वीकार कर उसमें ढल जाते हैं या उन्हें हमारे अनुकूल बना लेते हैं। राधे राधे। 

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