2/3/17-आदि बद्री दर्शन ,गंगोत्री ,जमनोत्री ,हरिद्वार ,मनसा माता दर्शन।
कल रात की घटना से मेरे मन को जिस प्रकाश की अनुभूति हुई थी, उसी का उजाला आज की भोर में दिख रहा था। आज मन सुबह से ही बहुत ही खुश और इस यात्रा पर आगे जाने को बेचैन था। रोज की तरह हमने आरती कर राधे रानी का आशीर्वाद लिया। और 4: 15 पर यात्रा के लिए रवाना हुए। करीब 4 किलोमीटर चलने के बाद ही हमारे रास्ते में बारिश ने जमकर हमारा स्वागत किया। हम में से किसी के पास में भी छतरी या कोई रेनकोट नहीं थे। सभी नहीं चाहते हुए भी भीगने पर मजबूर थे ।यूं तो सर्दी जनवरी -फरवरी तक ही रहती है, परंतु गांव में अभी भी बहुत ठंड चल रही थी, और ठंडी में बारिश का मजा सुहाना नहीं होता। वहीं कहीं रास्ते में एक बरामदा देखा और हम सभी उस में घुस कर अपने आप को बारिश से बचाने लगे। चारों तरफ खेत दूर- दूर तक कोई घर नहीं झमाझम बारिश बरस रही थी। लेकिन हमारे लिए कान्हा जी ने छतरी खोल दी थी। मैं वहां खड़ी- खड़ी यही सोच रही थी, कि प्रभु हमारा कितना ध्यान रखतेहै ,हमारे हर कदम पर उन्हें हमारी कितनी चिंता रहतीहै। हम चाहे किसी तैयारी में हो या ना हो, परंतु भगवान पूरी तैयारी में रहते हैं कब उनके भक्तों को किस चीज की जरूरत पड़ जाए उन्हें सब पता होता है। आधे घंटे में ही बारिश रुक जाती है , और हम आगे बढ़ने लगते हैं।
लेकिन कुछ ही दूर चलते- चलते हमारे साथ चल रही है एक भाभी का पैर फिसल जाता है, और वह रास्ते में गिर पड़ती है, उनके बहुत चोट आती है। उन्हें देखकर हम सभी का मन बहुत दुखी हो जाता है, बारिश की वजह से मिट्टी बहुत चिकनी हो गई थी इसीलिए अब वहां पर बहुत संभल- संभल कर चलना पड़ रहा था. छोटी सी गलती भी बहुत भारी पड़ सकती थी। हमने तुरंत कार्यकर्ताओं को फोन किया और उन्हें गाड़ी तक पहुंचाया। उनकी यह हालत देखकर हम थोड़े उदास हो गए थे और बहुत सावधानी पूर्वक चल रहे थे। पर किसे पता था कि, कुछ ही दूर में हमारी सारी उदासी इसी बारिश की वजह से छू हो जाएगी। रास्ते पर आगे बढ़ते -बढ़ते मौसम इतना सुहाना हो गया था, कि मैं आपको बता नहीं सकती।मैं और सरोज चारों तरफ की फोटो ले रहे थे, कभी वीडियो बना रहे थे, और बहुत मजे कर रहे थे। इस मौसम ने हमारी यात्रा का मजा दुगना कर दिया था चारों तरफ हरे- भरे खेत, मिट्टी की सोंधी सोंधी खुशबू, कई रंगों से भरा आसमान, हरे- हरे पौधों पर पीले पीले सरसों के फूल, यह नजारा बहुत खूबसूरत था।
यूं ही हंसते खेलते मजे करते हुए ,हम खेतों को पार करते चले गए और अलीपुर गांव में पहुंच गए। यह गांव गुजरियो का गांव था, वही गुजरी जो कान्हा को अपने घर दही और माखन खिलाने बुलाती थी। उनके लिए दही और माखन की मटकियां भर-भर कर रखती थी। आज इनके शरीर तो बदल गए परंतु इनकी आत्मा अभी भी उसी प्रेम सागर में डूबी हुई है ।जैसे ही हम यहां पहुंचे वे हमें बड़े प्यार से बुलाने लगी, अपने घर पर खाना खिलाने के लिए। हमें देख कर बहुत आश्चर्य हुआ ।हमें भी एक बहुत ही सुंदर सी गुजरी ने हाथ पकड़कर बड़े स्नेह के साथ अपने घर पर बुलाया ,हमें कहने लगी," तुम दोनों मुझे बहुत अच्छी लग रही हो, मेरे घर चलोगी खाना खाने ?चलो तुम्हें बाजरे की रोटी और साथ में छाछ पिलाती हूं "।किसी अनजाने का पहली बार मिलना, और सीधे मिलते ही भोजन के लिए पूछना ,आपको बहुत अजीब लग रहा होगा ।लेकिन वहां मुझे और सरोज को उसका यू पूछना बहुत अच्छा लगा ।ऐसा लगा जैसे वह हमें जानती है ,और हम उसे जानते हैं ,हम कुछ भी नहीं सोच पा रहे थे, हमने बस उसे कह दिया कि हां क्यों नहीं ,चलो ,और हम उसके पीछे -पीछे उसके घर चल पड़े। दो कमरे बाहर बड़ा सारा गार से बना चबूतरा, उस चबूतरे पर मिट्टी का चूल्हा और कूलर पड़ा था तो दूसरी ओर कच्ची मिट्टी में बंधी गाय और बकरियां और उनके छोटे-छोटे बच्चे हमारा मन मोह रहे थे । उसके घर जाकर जब हम बैठे तो मैं सोच रही थी कि वाह रे कान्हा तेरे कितने रूप है, आज इस गुजरी के रूप में हमें कितने प्रेम से खाना खिला रहा है, वरना आज की इस दुनिया में ऐसा अनुभव कहां मिलेगा ।मुझे आज सुबह से ही लग रहा था, की आज की यात्रा बहुत सुंदर होने वाली है ,और यहां आकर उस अनुभूति को एक प्रमाण भी मिल गया। उसकी बेटी हमारे लिए गरम- गरम बाजरे की रोटी बना रही थी उस बाजरे की रोटी के साथ छाछ पी कर पेट मन और आत्मा सभी तृप्त हो गए थे । रति जितना प्यारा उसका नाम था, उतना ही सच्चा और भोला उसका व्यवहार ।उसने हमसे हमारे फोन नंबर लिए, हमारे साथ फोटो खिंचवाई और फिर से पूरे परिवार के साथ आने का वादा लिया। हमने भी उसे बहुत-बहुत धन्यवाद किया और उसका आभार किया। हम उसे कुछ भेंट देना चाहते थे ,परंतु उसने लेने से मना कर दिया ,हमेशा याद रखने के लिए हम उसे एक निशानी देकर आए ।हमने अपने मोबाइल में इस पल को कैद कर लिया था। जो आज भी और हमेशा मेरे साथ रहेगा ।उसके घर के सामने कदम के पेड़ थे। वह कदम के पेड़ जो कान्हा की मुरली के और उनकी तरह-तरह की लीलाओं के साक्षी थे। हमने इन 11 कदम के पेड़ों के परिक्रमा की और रति से स्नेहपूर्ण विदाई लेते हुए आगे बढ़े। उसका मन नहीं मान रहा था, वह हमें कुछ दूर तक छोड़ने के लिए साथ-साथ भी आई। सच तो यह है कि मन तो हमारा भी नहीं मान रहा था, परंतु हम यात्रा पर थे और हमें आगे बढ़ना था।
थोड़ी दूर आगे बढ़ने के बाद हमें एक और गुजरी मिली उसकी दो बेटियां भी थी। उसने हमें छाछ पिलाई और दूध की एक बोतल भरकर साथ में दी उसने हमें देख कर कहा" तुम दोनों तो बहुत बड़ी सेठानी जैसी लग रही हो, तो हमने कहा नहीं भाई, हम तो तुम्हारे जैसे ही है तो उसने कहा कि" मैं कुछ मागूगी तो दोगी" तो हमने बोला हां जरूर बोलो तुम्हें क्या चाहिए? तो सरोज के गले में एक बहुत सुंदर सी माला थी ,उस गुर्जरी को वह माला बहुत पसंद आई और उसने कहा कि "सोच लो दे पाओगी" तो हमने कहा बोलो तो सही तो उसने कहा" मुझे यह माला बहुत पसंद है" सरोज ने तुरंत अपने गले में से निकालकर वह माला उसे भेंट दी ,उसे इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था। उसकी बेटियां भी उसे मना कर रही थी, लेकिन हमने उसे मनाया और उसे बड़े प्यार से वह माला उपहार के स्वरूप दी। वहां से आगे निकल कर हम खो गांव होते हुए तपत कुंड पहुंचे।
जहां हम ने स्नान किया और आदि बद्री और लक्ष्मण झूला के दर्शन किए. थोड़ी दूर और आगे बढ़ने के बाद रास्ते में हमने गंगोत्री, जमनोत्री, हरिद्वार और मनसा माता के दर्शन किए। इस पूरी यात्रा में हर वह स्थान आता है, जो हमारे हिंदुओं की चार धाम की यात्रा में आता है, यह उसी चार धाम की यात्रा का एक छोटा रूप है। सभी जगह दर्शन करते हुए हम आदि बद्री में हमारे पड़ाव पर पहुंचे।आज हमें हमारे टेंट पर पहुंचते-पहुंचते शाम हो गई थी। आरती का समय होने वाला था हम सभी ने आरती गाई , भजन किए और प्रसाद ग्रहण किया। चारों तरफ लाइट जलने लग गई थी, अंधेरा छाने लगा था और हम अपने टेंट में बैठकर आज की बातें कर रहे थे, तभी सामने से एक आवाज आई यह 17 नंबर टेंट कौन सा है? जिसमें चंदा और सरोज रहती है, हमने देखा रति हमारा टेंट ढूंढ रही थी ।हमने उसे जोर से आवाज दी ,अरे ,हम इधर है इधर आ जाओ। हमें उसके आने की कोई उम्मीद नहीं थी, उसे देखकर हम बहुत खुश हो गए थे। वह एक बाल्टी भरकर दूध लेकर आई थी। हम सभी को पिलाने के लिए वह हमारे साथ टेंट में बैठी और उसने हम सभी को थोड़ा -थोड़ा दूध दिया। उसका इतना स्वार्थ रहित प्रेम बहुत ही अद्भुत था ।उसने हम सभी से बैठ कर ढेरों बातें की, आज उसका यहां से जाने का मन नहीं था ।वह अपने बेटे के साथ बाइक पर बैठ कर आई थी। वह हमसे और हम उससे बिछड़कर बहुत ही भावुक हो रहे थे, पता नहीं क्यों? यह कैसा रिश्ता था ?और इस रिश्ते का क्या नाम है? हम नहीं जानते ,परंतु जो भी था वह हमारे जीवन के एक पन्ने पर हमेशा के लिए छप गया।
आज भोर में भी मैं भीग गई थी ,और अब रात की शुरुआत में भी मैं भीग रही हूं ,फर्क है उन बारिश की बूंदों का जो दिन में मुझे बाहर से भीगा रही थी और अब मेरे मन और मेरी आत्मा को भीगा रही है। पहले तो कभी ऐसी बारिश नहीं हुई, और ना कभी मैंने महसूस किया, पर आज इस बारिश में भीगने का मजा बहुत अद्भुत था। जिसका वर्णन मैं शब्दों में नहीं कर सकती । हर रोज मूर्तियों मैं प्रभु की छवि को निहारती थी, पर आज मैं साक्षात मिल कर आई हूं तो नींद कैसे आती, लेकिन तभी से पहरेदारों ने आवाज लगाना शुरु किया ,सभी आराम से सो जाइए सुबह जल्दी उठकर चलना है मानो कह रहे थे, कि सो जाइए कल फिर भगवान को किसी ना किसी रूप में मिलना है, उस मिलने की लालसा में सोना तो बहुत जरूरी था, इसीलिए आज के लिए शुभ रात्रि कल पता नहीं कान्हा कौन से रूप में हमारा इंतजार कर रहा होगा।
।राधे राधे।
Yaar. Kuch kahane ko nahin hai.. shayad bhagwan is anubhuti ka naam Hai. Is prem ka naam Hai to hum mahadoos karate hain.. apne andar aisi ghatana see
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