मंगलवार, 19 दिसंबर 2017

Braj 84 kos padyatra day 18

 11/3/17-अक्षय वट ,चीर घाट ,नन्द घाट ,भद्रवन। 


रात्रि में आये तूफ़ान के कारण सभी कुछ व्यवस्थित करने में बहुत समय लगा, इसीलिए आज  सुबह 6:00 बजे यात्रा शुरू हुई।हल्के हल्के कोहरे की चादर छठ गयी थी। दूर दूर तक बिल्कुल साफ़ और सुन्दर नज़ारे सूर्य की रौशनी से खिल उठे थे।  लगभग 9 किलोमीटर चलने के बाद अक्षय वट आया, यूँ तो अक्षय वट प्रयाग में स्थित है।  जिसके विषय में कई पुस्तकों में लिखा गया है किन्तु, यहाँ वृन्दावन में भी एक अक्षय वट प्रसिद्द है ,जहाँ दुर्वाषा ऋषि ने तपस्या की थी और कई दिनों तक विश्राम किया था ,यहाँ यमुना जी के किनारे उनका मंदिर है। बसंत पंचमी पर यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है। वहां दर्शन इत्यादि करने के बाद हम आगे चीर घाट की ओर बढ़ने लगे।

  चीर घाट वही घाट है जहां श्री कृष्ण ने नहाते हुए गोपियों के कपड़े चुराए थे। यहाँ कदम्ब वृक्ष के नीचे घाट  पर कात्यायनी व्रत हेतु गोपियाँ स्नान करने आती थी। व्रत के अंतिम दिन श्री कृष्ण ने स्वयं वहाँ पधारकर वस्त्रहरण के बहाने उनको मनोभिलाषित वर प्रदान किया था। चीर घाट पर हम सभी ने नए वस्त्र साड़ियां इत्यादि चढ़ाई दर्शन किए। 

आगे नंदघाट दर्शन के लिए रवाना हो गए जहां पर बाबा नंद अपने गांव से नहाने आते थे। हमने भी नंद घाट में जाकर यमुना जी में डुबकी लगाई और पानी में खूब खेले एक दुसरे पर पानी उछाल कर हम सभी ने आपस में बहुत मस्ती की। यात्रा के इस अंतिम पड़ाव पर हम हर पल आनंद बटोर रहे थे। मात्र दो दिन की पदयात्रा ही शेष थी। इतने दिनों के साथ ने हम सभी के बीच की सभी दीवारों को मिटा कर एक परिवार की तरह जोड़ दिया था। यहाँ से आज हमें नाव में बैठकर यमुना जी के उस पार जाना है।यहाँ कई नाँव किनारे पर लगी हुई थी। जिनमें थोड़े थोड़े लोग बैठ कर जाने लगे, बीच में हमने  गंगा जमुना के संगम का दर्शन किया। यमुना जी के उस पार पहुँच कर हमने पुनः पैदल यात्रा प्रारंभ की





हमें भद्रवन पहुंचना था, जहां पर हमारा विश्रामगृह था।
ठन्डे पानी ने हम सभी में नयी ताजगी भर दी थी सभी के चेहरे खिल रहे थे हसी मजाक का वातावरण बना हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे यमुना जी ने हमारी थकान हमारे दर्द सभी ले लिए। शरीर और मन के सभी बोझ हम जमुना जी में ही छोड़ आये थे। ना जाने आज हमारे कदम चल रहे थे या जमीन यमुना जी से भद्रवन का रास्ता कब पार हो गया पता ही नहीं चला। आज पानी में कई देर तक रहने के कारण बहुत जोर से भूख लगी सभी ने मिल कर प्रसाद ग्रहण किया और सभी ने एक साथ मिल कर समय बिताने का निश्चय किया। बस दो दिन ही शेष है ये बात बार बार सभी के जुबान पर आ रही थी।  लेकिन आज भी मौसम का मिज़ाज कुछ ठीक नहीं था। तेज हवाओं के साथ बारिश की बौछारें आने लगी। हम सभी को कल रात्रि का अनुभव था , सभी अपने -अपने टैंट की तरफ भागने लगे। यहाँ आस पास कोई रुकने का दूसरा स्थान नहीं था। इसलिए सभी ने  अपने तंबुओं के चारों तरफ बड़ी-बड़ी मिट्टी की दीवारें खड़ी की ताकि हमारे टैंट में पानी ना भरे और हमारा सामान उन तंबू में सुरक्षित रह सके। ईश्वर की हम सबसे अद्भुत कृति हैं, हर एक परिस्थिति में रहने के हम अपने रस्ते निकाल ही लेते है। कुछ तो जादू है इस यात्रा में ,चाहे जैसी भी समस्या हो हमारे मन कभी घबराये नहीं कान्हा पर अटूट विश्वास हमें अँधेरे में रौशनी की तरह रास्ता दिखाता रहता था। आंधी ,तूफ़ान, बारिश सभी बस हमें छु कर चले गए। चारों तरफ  शांति छा गयी,उस शांति को चीरती हुई आवाज आने लगी ,गोविन्द बोलो हरी  गोपाल बोलो --------ढोलकी और झांझर की आवाज में भजन होने लगे। आरती का समय हो गया था हम सभी ने बहुत आनंद के साथ आरती की और भजन गाये।   इस समय यहां का वातावरण अद्भुत हो जाता है दूर दूर तक पूरी प्रकृति हमारे साथ नाचती गाती है। हरे कृष्णा के रंग में सभी कुछ कृष्ण कृष्ण हो जाता है। 
    राधे राधे। 

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