5/3/17-नागाजी की कदम खण्डी ,सुदैवीजी के दर्शन, ऊंचे गाँव ,ललिता जी के दर्शन,देहकुंड।
रोज सुबह जब हम उठते थे, तो अपने बिस्तर समेट कर अपनी नित्य क्रिया से निवृत होकर, मैं या सरोज हम दोनों में से कोई भी हमारे पुरे ग्रुप के लिए चाय लेकर आते थे, सभी अपना- अपना सामान जमा कर ,त्रिपाल पर रख रहे होते थे। चाय पीकर हम भी, अपने सामान को व्यवस्थित कर त्रिपाल पर रख कर राधे रानी की आरती के लिए उनके मंदिर के सामने पहुंच जाते थे।
यात्रा प्रारंभ करते हुए, हम सब से पहले आज कदम खंड पहुंचे। कदम खंड जहां पर एक नागा साधु ने बहुत ही कठिन तपस्या की थी। वह भगवान की तपस्या में इतने लीन हो गए थे, कि उन्हें खुद की कोई सुध- बुध नहीं थी। वह राधा रानी और भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करना चाहते थे,यह उनका हठ था। इस तपस्या के दौरान उनके बाल बहुत ज्यादा उलझ गए थे, और उनके बाल बहुत कठोर हो गए थे ।जब कोई भी उन्हें कहता अपने बालों का ध्यान रखने के लिए तो वह कहते कि मेरे बाल मेरे कान्हा और राधे रानी स्वयं आकर सुलझाएंगे । वह कई वर्षों तक निरंतर तपस्या करते रहे, और अपने हठ पर कायम रहे। उनकी इस साधना से प्रसन्न होकर भगवान श्री कृष्ण और राधेरानी स्वयं प्रकट हुए दोनों ने मिलकर उन नागा साधु बाबा के बाल सुलझाएं। उनके बाल इतने कठोर थे कि भगवान श्री कृष्ण और राधे रानी के हाथों में खून आने लगे। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने अपने भक्त का हट पूरा किया। अब यहां के मंदिर का जीर्णोद्धार हो चुका है, प्राचीन मंदिर के समीप अभी भी जो पेड़ है उन सभी पेड़ों के पत्ते ,टहनियाँ बालों की तरह उलझे हुए है, मान्यता है कि ये सभी पेड़ साधु बाबा के बालों को ही दर्शातें हैं।
भक्त और भगवान् की अनेकों कहानियाँ हमारे इतिहास में पौराणिक कथाओं में प्रचलित है, पर जब उन कथाओं के साक्ष्य भी देखने को मिलते हैं तो विश्वास और भी प्रबल हो जाता है। मेरे कदम सुदेवी जी के दर्शन की यात्रा पर बढ़ रहे थे,परन्तु मन अभी भी एक भक्त के हठ और उस जिद को पूरा करने वाले भगवान् पर ही अटका हुआ था। ऐसी कोनसी शक्ति होती थी, जो एक सधारण इंसान को भक्ति के लिए प्रेरित करती थी ,कई वर्षों तक भक्ति में लीन रखती थी, क्या उन्हें भूख ,प्यास ,गर्मी ,सर्दी कुछ भी परेशान नहीं करता था। मुझे तो लगता है वे हमारी तरह साधारण नहीं होते थे। वे तो कोई योग की अवस्था को प्राप्त किये हुए योगी ही होते थे। जिसे समझना मेरे बस की बात नहीं है। सरोज और मुझे एक ठेले पर संतरे दिखे ,बहुत देर से भूख भी लग रही थी और प्यास भी हमने संतरे ख़रीदे और खाते -खाते आगे बढे।
राधे रानी की सबसे प्रिय 8 सखियाँ हैं ,सुदेवी जी राधे रानी की प्रिय सखी है ,ये राधे रानी के श्रृंगार करती ,फूलों की बागवानी करती ,और राधा कृष्ण का हर पल ध्यान रखने वाली प्रिय सखियों में से एक है,इनका मंदिर सुनेरा गांव में है। सुदेवी जी के दर्शन कर हम उचगांव के लिए निकले जहाँ राधे और कृष्णा की सबसे प्रिय सखी ललिता जी का मंदिर है।
कृष्ण अवतार स्वयं में एक पूर्ण अवतार है। कान्हा का आकर्षण इतना प्रगाढ़ है की कोई भी उससे बच नहीं सकता। आज मै कान्हा के प्रेम रूप की यात्रा कर रही थी। कहीं भक्त के प्रति तो कही गोपियों के, सखियों के प्रति।गोपियों का प्रेम कान्हा के प्रति इतना निष्काम ,निश्छल और स्वार्थ रहित है, की आज के युग में तो हम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। राधा कृष्ण तो एक ही आत्मा है, उन्हें कभी अलग नहीं देखा जा सकता। गोपियाँ और सखियाँ भी सभी कान्हा के रंग में अपनी आत्मा को रंग चुकी थी, बस उनके शरीर ही उनके परिवार और इस संसार के प्रति अपना कर्तव्य निर्वाह कर रहे थे। ये कैसा प्रेम है , जिसे सभी एक दुसरे के साथ बाँट कर भी बहुत खुश होते है,यही है कृष्ण दर्शन कृष्ण का प्रेम।
सर पर तेज धुप लग रही थी ,हम उचगांव ,ललिता देवी के दर्शन कर आगे बढ़ रहे थे। ४-५ किलोमीटर चलने के बाद हवाएँ कुछ ठंडी होने लगी सामने देहकुंड के दर्शन हो रहे थे।माना जाता है की , यहाँ श्री राधा रानी ने भगवान् श्री कृष्ण का सोने से तुला दान किया था। उनकी देह के बराबर सोना एक गरीब को दिया था, अपनी पुत्री के विवाह के लिए। इसलिए यहाँ जो भी स्नान करता है, वो अपनी क्षमता के अनुरूप गुप्त दान करता है। हम सभी ने यहाँ स्नानादि कर अपनी- अपनी श्रद्धा से गुप्तदान किया।
देह कुंड से हमने सूर्य कुंड ,प्रिय कुंड सभी के दर्शन किये ,और खेतों के रस्ते आगे बढ़ते गए। तेज धुप में आपके आस- पास लहराते हुए खेत आपके शरीर और आँखों दोनों को ठंडक पहुंचाते रहते है।आज का हमारा पड़ाव बरसाने में घुसते ही वाल्मीकि आश्रम पर है, यहाँ पहुंच कर हमने प्रसाद ग्रहण कर विश्राम किया। करीब 4 बजे हम यहाँ पास के राधे रानी के मंदिर में दर्शन करने गए।
गुलाबी रंग से सराबोर मंदिर में चारों तरफ गुलाल ही गुलाल बिखरा हुआ था। मंदिर में गुलाबों से सजी राधे रानी के दर्शन कर हम मंदिर की परिक्रमा करने लगे। होली के दिनों में बरसाने में धूम मची होती है। पूरा मंदिर गुलाल से नहाया हुआ था, यहाँ लडुओं, फूलों और गुलाल से होली खेली जा रही थी। यहाँ की हवाओँ में उड़ता गुलाल हम सभी के मन को उल्लास से भर रहा था। हम सभी इस उत्सव में घुल गए और एक दुसरे के साथ प्रेम से रंग भरी होली खेल रहे थे।
सभी के चेहरे ख़ुशी के रंगो से खिले हुए थे। मन में उत्साह और आँखों में चमक थी। ये चमक थी इस अनुपम यात्रा की। हँसते - खेलते दिन का पहर बीत गया और हम अपने पड़ाव पर लौट आये। राधे रानी की आरती कर प्रसाद ग्रहण किया और भजन करने बैठ गए। कल हमें बरसाने की यात्रा में होली का एक और रंग भी देखने को मिलेगा जिसे देखने यहाँ दूर दूर से लोग आते हैं लठमार होली।रात्रि विश्राम के लिए सभी अपने टैंट में पहुँच गए और कल सुबह की तैयारी करके सोने लगे। कान्हा के भक्त की ,कान्हा के प्रेम की ,आज के आनंद की जय हो। राधे राधे।
बहुत सुंदर
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